________________
पिटक है। बुद्धवंस में गोतम बुद्ध और उनके पूर्ववर्ती २४ बुद्धों का वर्णन है, जब कि प्रथम चार निकायों (विशेषतः महापदानमुत्त-दीघ. २१३) में केवल ६ पूर्ववर्ती बुद्धों का ही वर्णन मिलता है। चग्यिापिटक में बोधिसत्वों की जीवनचर्या का वर्णन मिलता है। यहीं पर सर्व प्रथम दम पारमिताओं का भी वर्णन मिलता है। जातक की कहानियों से इन सब की बड़ी समानता है। बल्कि कहना चाहिये एक प्रकार से चरियापिटक २६ पद्य-बद्ध जातकों का संग्रह ही है। जिस प्रकार वुद्धवंस और चरियापिटक जातक के उत्तरवर्ती हैं, उसी प्रकार निद्देस भी जातक के बाद का संकलन है। जैसा अभी कहा जा चुका है, चल्ल-निद्देस में जातक का निर्देश मिलता है। निदेस (जिसमें चल्ल-निद्देन और महानिद्देम दोनों सम्मिलित हैं) सुत्त-निपात से वाद का संकलन हैं। एक प्रकार से निद्देस सुत्त-निपात के कुछ अंशों की व्याख्या ही है। चुल्लनिद्देस खग्गविसाणसुत्त और पारायणवग्ग की व्याख्या है, जब कि महानिदेस में अट्ठकवग्ग की व्याख्या की गई है। अतः निद्देस सत्त-निपात से बाद की रचना ही मानी जा सकती है। डा० लाहा को मत इससे भिन्न है। उनका कहना है कि निद्देस सुत्त-निपात से पहले की रचना होनी चाहिये। इसके लिये उन्होंने दो कारण दिये है, (१) महानिद्देस में सुत्त-निपात के अट्टकवग्ग की व्याख्या उस युग की सूचक है जब अट्ठकवग्ग एक अलग वर्ग की अवस्था में था, (२) सुत्त-निपात के पारायणवग्ग के आरम्भ में एक प्रस्तावना है जो चुल्ल-निद्देस की व्याख्या में लुप्त है। यदि चुल्ल-निद्देम सुत्त-निपात के बाद का संकलन होता तो इस प्रस्तावना की भी व्याख्या वहाँ अवश्य होती।' डा० लाहा न जो कारण दिये है वे निषेधात्मक ढंग के हैं। निदेस के रचयिता या संकलनकर्ता को सुत्त-निपात के सम्पूर्ण अंशों की जानकारी होते हुए भी वह उसके कुछ अंशों को ही व्याख्या के लिये चुन सकता था। इसी प्रकार प्रस्तावना की भी व्याख्या करना या न करना उसकी इच्छा पर निर्भर था। मब से बड़ी बात तो यह है कि निद्देस में सत्त-निपात की कतिपय गाथाओं की व्याख्या की गई है, अतः वह उसके बाद की रचना ही हो सकती है। जिस प्रकार बुद्धवंस, चरियापिटक और निद्देम जातक के बाद की रचनाएं है उसी प्रकार थेर
१. हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ ३८