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( २८७ ) राष्ट्र में भी, जिमका साक्ष्य ब्रह्मदत्त जातक (३२३), जयद्दिस जातक (५१३) और गण्डतिन्दु जातक (५२०) में विद्यमान है ।' पंचाल-राज दुर्मुख निमि का समकालिक था, इसकी सूचना हमें ४०८ संख्या के जातक से मिलती है । अस्सक (अश्मक) राष्ट्र की राजधानी पोतन या पोतलि का उल्लेख हमें चुल्लकलिङ्ग जातक (३०१) में मिलता है। मिथिला के विस्तार का वर्णन सुरुचि जातक और गन्धार जातक (४०६) में है। महाजनक जातक (५३९) में मिथिला का बड़ा सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है, जिसकी तुलना महाभारत ३. २०६. ६-९ से की जा सकती है। सागल नगर का वर्णन कलिङ्गबोधिजातक (४७९) और कुश जातक (५३१) में है । काशी राज्य के विस्तार का वर्णन धजविदेह जातक (३९१) में है। उसकी राजधानी वाराणसी के केतुमती, सुरुन्धन, सुदस्सन, ब्रह्मवड्ढन, पुप्फवती, रम्मनगर और मोलिनी आदि नाम थे, ऐसा साक्ष्य अनेक जातकों में मिलता है। २ तण्डुलनालि जातक (५) में वाराणसी के प्राकार का वर्णन है। तेलपत्त जातक (९६) और सुसीम जातक (१६६) में वाराणसी और तक्षशिला की दूरी १२० योजन बनाई गई है। कुम्भकार जातक (४०८) में गन्धार के राजा नग्गजि या नग्नजित् का वर्णन है । कुरु जातक (५३१) में मल्लराष्ट्र और उसकी राजधानी कुसावती या कुमिनारा का वर्णन है । चम्पेय्य जातक (५०६) में अङ्ग और मगध के संघर्ष का वर्णन है। वत्स राज्य और उसके अधीन भग्ग-राज्य की सूचना धोनसाख जातक (३५३) में मिलती है । इन्द्रिय जातक में सुरट्ठ, अवन्ती, दक्षिणापथ, दंडकवन, कुम्भवति नगर आदि का वर्णन है। बिम्बिसार सम्बन्धी महत्वपूर्ण सूचना जातकों में भरी पड़ी है। महाकोशल की राजकुमारी कोसलादेवी के साथ उसके विवाह का वर्णन और काशी गाँव की प्राप्ति का उल्लेख हरितमातक जातक (२३९) और वड्ढकिसूकर जातक (२८३) आदि जातकों में है। मगध और कोसल के संघर्षो का और अन्त में उनकी एकता का उल्लेख वड्ढकिसूकर जातक, कुम्मासपिंड जातक, तच्छसकर जातक और भद्दसाल
१. मिलाइये कुम्भकार जातक (४०८) भी २. देखिये, डायलॉग्स ऑव दि बुद्ध, तृतीय भाग, पृष्ठ ७३; कारमाइकेल लेक्चर्स,
(१९१८), पृष्ठ, ५०-५१