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( २९४ ) जातक (५३६) में कृष्ण और द्रौपदी की कया है। इसी प्रकार घट जातक (३५५) में कृष्ण द्वारा कंस-वध और द्वारका बमाने का पूरा वर्णन है। महाकण्ह जातक (४६९) निमि जातक (५४१) और महानारदकस्सप जातक (५४४) में राजा उशीनर और उसके पुत्र शिवि का वर्णन है। सिविजातक (४९९) में भी राजा शिवि की दान-पारमिता का वर्णन है । अतः कहानी मूलत: बौद्ध है, इसमें सन्देह नहीं। महाभारत में १०० ब्रह्मदत्तों का उल्लेख है (२.८.२३) १ सम्भवतः ब्रह्मदत्त किसी एक राजा का नाम न होकर राजाओं का मामान्य विशेषण था, जिसे १०० राजाओं ने धारण किया। दुम्मेध जातक (५०) में भी राजा और उसके कुमार दोनों का नाम ब्रह्मदत्त बताया गया है । इसी प्रकार गंगमाल जातक (४२१) में कहा गया है कि ब्रह्मदत्त कुल का नाम है । सुसीम जातक (४११) कुम्मासपिंड जातक (४१५) अट्ठान जातक (४२५) लोमस्सकस्मय जातक (४३३) आदि जातकों की भी यही स्थिति है । अत: जातकों में आये हुए ब्रह्मदत्त केवल 'एक समय' के पर्याय नहीं हैं, ऐसा कहा जा मकता है। उनमें कुछ न कुछ ऐतिहासिकता भी अवश्य है। रामायण और महाभारत के अतिरिक्त पतंजलि के महाभाष्य में भी जातक-गाथाएँ उल्लिखित हैं,२ प्राचीन जैन साहित्य में भी और पंचतन्त्र, हितोपदेश, वैताल पंचविंशति, कथासरित्सागर तया पैशाचीप्राकृत-निबद्ध 'बड्डकहा' (बृहत्कथा) में भी जातक का प्रभाव क्रिम प्रकार स्पष्टतः उपलक्षित है, इसके निदर्शन के लिए तो कई महाग्रन्यों की आवश्यकता होगी। ___'जातक' ने विदेशी साहित्य को भी किस प्रकार प्रभावित किया है और किस प्रकार उसके माध्यम से बुद्ध-वचनों का गमन दूरस्थ देशों में, यूरोप तक, हुआ है, इमकी कथा भी बड़ी अद्भुत है । जिस प्रकार जातक-कथाएँ समुद्रमार्ग से लंका, बरमा, सिआम, जावा, सुमात्रा, हिन्द-चीन आदि दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों को गईऔर वहाँ स्थापत्य-कला आदि में चित्रित की गई, उसी प्रकार म्थल-मार्ग मे हिन्दुक श और हिमालय को पार कर पच्छिमी देशों तक उनके
१. मिलाइये "शतं वै ब्रह्मदत्तानाम्" (मत्स्य पुराण) २. जर्नल ऑव रॉयल एशियाटिक सोसायटी, १८९८, पृष्ठ १७ ३. विन्टरनित्ज : इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १४५, पद-संकेत २