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किया"१ जिस प्रकार किसी कालेज की दीवाल में लगे हुए प्रस्तरपट पर उसके प्रिंसिपलों के खुदे हुए नामों की सूची में कोई सन्देह नहीं करता, उसी प्रकार हमें विनय-धरों की इस सूची को भी प्रामाणिक मानना चाहिये । विनय-पिटक के भेद
पालि संस्करण के अतिरिक्त विनय-पिटक के छह और संस्करण चीनी अनुवादों में मिलते है । इनके नाम है (१) जूजु-रित्सु, सर्वास्तिवादियों का विनय (२) शिबुन्-रित्सु, धम्मगुनिक या धर्मगप्तिक सम्प्रदाय का विनय (३) मथसोगि-रिन्म, महासंधिक सम्प्रदाय का विनय (४) कोन-पोनसेत्सु-इस्से-उबु, नवीन या उत्तरकालीन सर्वास्तिवादियों का विनय (५) गोबुन-रिम या महिसासक विनय (६) विनय । विनय-पिटक के इन छह चीनी संस्करणों में आपस में बहत कम भेद है । मौलिक रूप से वे सब समान है। जिन सम्प्रदायों से वे सम्बन्धित हैं, उनका उद्भावन अशोक के काल से पहले ही हो चुका था। वे सब स्थविरवाद बौद्ध धर्म की ही शाखा थे और विनय-सम्बन्धी कुछ छोटे-मोटे मत-भेदों के कारण ही उनसे अलग हो गये थे। 'कथावत्थु' में इन सब का वर्णन आया है। पाँचवें अध्याय में हम इन सब के सिद्धान्तों का विवरण देंगे। यहाँ अलग से परिचय देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। स्थविरवाद बौद्ध धर्म के अलावा अन्य १७ बौद्ध सम्प्रदायों के, जो तृतीय संगीति तक उत्पन्न हो चुके थे, साहित्य के विषय में हमें अभी कोई महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। केवल सर्वास्तिवादियों का कुछ साहित्य मिला है. जिसका कुछ विवरण हम ने सुन्नत-पिटक के विवेचन के आरम्भ में दिया है और उनके अभिधर्म-साहित्य का स्थविरवादियों के साथ तुलनात्मक विवेचन हम पाँचवें अध्याय में करेंगे। यह प्रसन्नता की बात है कि विनय के क्षेत्र में न केवल सर्वास्तिवादियों का ही बल्कि उनसे अतिरिक्त अन्य पाँच प्राचीन वौद्ध सम्प्रदायो का भी साहित्य मिलता है जो सव उत्तरकालीन वौद्ध धर्म के विकास की दष्टि से हीनयानी ही थे। न केवल विनय-पिटक ही बल्कि उसकी पाँच व्याख्याएं भी चीनी अनुवादों में सुरक्षित हैं। उनके नाम है (१)
१. बुद्धचर्या पृष्ठ ५७६ में अनुवादित ।मोग्गलिपुत्त तिस्स तक की परम्परा के लिए
देखिये आगे नवें अध्याय में 'महावंस' सम्बन्धी विवरण भी।