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( २९९ ) यह दिखाया गया है कि किस प्रकार भगवान् ने नाना पारमिताओं को पूरा किया था। दम पारमिताओं में से यहाँ केवल सात का उल्लेख है, यथा दान, शील, नैष्कर्म्य, अधिष्ठान, सत्य, मैत्री और उपेक्षा। प्रज्ञा, वीर्य और क्षान्ति का वर्णन नहीं है । सम्पूर्ण ग्रन्थ ६ परिच्छेदों में है जिनमें कुल मिला कर २५ जीवन-चर्याओं का वर्णन है। प्रत्येक जीवन-चर्या का वर्णन एक जातक-कथा मा लगता है जिसे गाथात्मक रूप दे दिया गया है। नाम-साम्य भी दोनों में पूग है। उदाहरण के लिए 'अकित्ति-चरियं' 'अकित्ति-जातक' का रूपान्तर मात्र है। इसी प्रकार 'संखचग्यि' 'संखपालजातक के, 'कुरुधम्म चरियं' 'कुरुधम्म जातक के तथा इसी प्रकार ग्रेप चर्याएँ प्रायः उसी नाम के जातक के पद्यात्मक रूपान्तर मात्र हैं। जानक से अन्यन्त सम्बन्धित होते हुए भी चरियापिटक का कलात्मक रूप उस कोटि तक नहीं पहुंच पाया है। वैसे कई मनोहर गाथाएँ भी यत्र-तत्र दिखाई पड़ती है।
'चरियापिटक' की प्रत्येक 'चर्या' की तुलना किम जातक में है, यह निम्नलिखित तालिका में स्पष्ट होगा।
१--दान पारमिता
२. अकित्ति चरियं--अकित्ति जातक (४८०) २. संव चरियं---संखपाल जातक (५२४) ३. कुरुधम्म चयिं--कुरुधम्म जातक (२७६) ८. महामुदस्सन चरियं--महासुदस्सन जातक (९५) ५. महागोविन्द चरियं--महोगोविन्द मुत्तन्त (दीघ निकाय) ६. निमिराज चयिं-निमि जातक (५४१) ७. चन्दकुमार चरियं-खंड हाल जातक (५४२) ८. मिविराज चरियं--सिवि जातक (८९९) २. वेस्मन्तर चरियं--वेस्सन्तर जातक (५४७) १०. समपंडित चयिं-सस जातक (३१६)