________________
( ३०८ ) नियमों के अभ्यास के लुप्त हो जाने पर बुद्ध-शासन भी लुप्त हो जायगा। विशेपतः सिंहल और स्याम के भिक्षु-संघ में अभी तक यह विश्वास दृढ़ है और वे विनय, सुत्त, अभिधम्म यह क्रम महत्त्व की दृष्टि से त्रिपिटक का करते हैं । विनय-सम्बन्धी मामलों में बरमी भिक्षु-संघ पर सिंहली प्रभाव ग्यारहवीं शताब्दी से ही रहा है । दोनों देशों में बुद्धदत्त, बुद्धघोष और धम्मपाल (चौथी-पाँचवी शताब्दी के प्रसिद्ध पालि अट्ठकथाकार) के काल से लेकर ठीक आधुनिक काल तक विनय-पिटक पर विपुल व्याख्यापरक साहित्य की रचना हुई है, जो इन देशों में उसकी जीवित परम्परा का सूचक है। न केवल स्थविरवाद बौद्ध धर्म की परम्परा में ही बल्कि अन्य बौद्ध सम्प्रदायों में भी विनय की महिमा सुरक्षित है, फिर चाहे उनके विनयपिटक का स्वरूप स्थविरवादी बौद्धों के विनय-पिटक से भले ही कुछ थोड़ा विभिन्न हो। चीन और जापान में 'रिश्शु' नामक बौद्ध सम्प्रदाय है, जिसका शाब्दिक अर्थ ही है 'विनय-सम्प्रदाय' । यह सम्प्रदाय 'धम्मगत्तिक' विनय को ही अपना मुख्य आधार मानता है । इस प्रकार विनय की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण बौद्ध सम्प्रदायों में समान रूप से पाई जाती है।।
ऐतिहासिक और साहित्यिक दष्टि से भी विनय-पिटक का बड़ा महत्त्व है । पिटक-साहित्य के कालानुक्रम के विवेचन में हम देख चुके हैं कि विनय-पिटक के अनेक अंश त्रिपिटक के प्राचीनतम अंशों में से हैं। न केवल बुद्ध की जीवनी, बल्कि उनके द्वारा संघ की स्थापना, उनके जीवन-काल में संघ का विकास, उसके नियम, उसका शासन, एवं बुद्ध-परिनिर्वाण के बाद १०० साल तक का उसका प्रामाणिकतम इतिहास, यह सब हमें विनय-पिटक से ही मिलता है। प्रथम दो बौद्ध संगीतियों के विषय में किस प्रकार विनय-पिटक का विवरण प्राचीनतम और प्रामाणिकतम है, यह हम दूसरे अध्याय में देख चुके है । इसके अलावा बुद्ध के शिष्यों का परिचय. छठी-पाँचवीं शताब्दी ईसवीपूर्वके भारत कासामाजिक विवरण, विशेषतः बुद्धकालीन संघ और तत्सम्बन्धी विवरण,इम सबके लिये विनय-पिटक के
१. सिंहली विनय-पिटक सम्बन्धी ग्रन्थों के आधार पर ही बरमा में इस सम्बन्धी
साहित्य की रचना हुई। देखिये मेबिल बोड : दि पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ५