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( २११ ) से सुत्त-पिटक से लगभग ३० सुत्तों का संग्रह कर लिया गया है, जिनका पाठ, बौद्धों के विश्वास के अनुसार, रोग, दुर्भिक्ष आदि उपद्रवों को शान्त करने वाला और सामान्यतः मङ्गलकारी होता है। लंका और बरमा में परित्त-पाठ की प्रथा अधिक प्रचलित है।' मेबिल बोड ने हमें बतलाया है कि वरमा में तो इसके समान लोक-प्रिय पुस्तक ही पालि-साहित्य की दूसरी नहीं है ।२ खुद्दक-पाठ के ऊपर निर्दिष्ट ९ सुत्तों में से सात 'परित्त' में भी सम्मिलित हैं। 'परित्त' में विशेपतः निम्नलिखित सुत्त सम्मिलित हैं
१ दस धम्म-सुत्त २ महामंगल सुत्त ३ करणीय मेत्त सुत्त ४ चुन्दपरित्त सुत्त ५ मेत्त सुत्त ६ मेत्तानिसंस सुत्त ७ मोरपत्ति सुत्त ८ चन्दपरित्त सुत्त ९ सुरिय परित्त सुत्त १० धजग्ग सुत्त ११ महाकस्सपथेर बोज्झंग सुत्त १२ महामोग्गल्लानथेर बोज्झंग सुत्त १३ महाचन्दत्थेर बोज्झंग सुत्त १४ गिरिमानन्द सुत्त १५ इसिगिलि सत्त १६ धम्मचक्कपवत्तन सुत्त
१. लंका में यह 'पिरित' कहलाता है । लंका में परित्त-पाठ की सांगोपांग विधि के विवरण के लिये देखिये त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित का "परित्त-पाठ
और लंका" शीर्षक लेख “धर्मदूत" फर्वरी-मार्च १९४८ पृष्ठ, १६३-६७ में; २. दि पालि लिटरेचर ऑव बरमा, पृष्ठ ३-४