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( २२० ) छोड़ देती है, वैसे ही तुम राग और द्वेष को छोड़ दो।" "ब्राह्मण-वग्ग" (वर्ग २६) में ब्राह्मणों के लक्षण गिनाये गए है। २६।१३-४१ गाथाएँ तो बड़ी ही काव्यमय हैं। भगवान् की दष्टि में वास्तविक ब्राह्मण कौन है, इस पर कुछ गाथाएँ देखिए
"माता और योनि से उत्पन्न होने से मैं किसी को ब्राह्मण नहीं कहता। वह तो 'भोवादी' ('भो' 'भो' कहने वाला, जैसा ब्राह्मण उस समय एक दूसरे को सम्बोधन करते समय करते थे) है और संग्रही है । मैं तो ब्राह्मण उसे कहता हूँ जो अपरिग्रही और लेने की इच्छा न रखने वाला है। "जो विना दूपित चित्त किये गाली, वध और बन्धन को सहन करता है,
आमा बल ही जिसकी सेना का सेनापति है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। “कमल के पत्ते पर जल और आरे के नोक पर सरसों की भांति जो भोगों में लिप्त नहीं होता, उस मै ब्राह्मण कहता हूँ। "जो विरोधियों के बीच विरोध-रहित रहता है, जो दंडवारियों के बीच दंड रहित रहता है, संग्रह करने वालों में जो संग्रह-रहित है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। "जिसने यहां पुण्य और पाप दोनों की आसक्ति को छोड दिया, जो गोक
रहित, निर्मल और शुद्ध है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ। "जिसके आगे, पीछे और मध्य में कुछ नहीं है, जो सर्वत्र परिग्रह रहित है,
उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ।" आदि। ऊपर धम्म-पद की विषय-वस्तु के स्वरूप का जो परिचय दिया गया है, उससे स्पष्ट है कि उसमें नीति के वे सभी आदर्श संगृहीत हैं जो भारतीय संस्कृति और समाज की सामान्य सम्पत्ति हैं। धम्मपद की आधी से अधिक गाथाएँ त्रिपिटक
१. डा० विमलाचरण लाहा ने 'हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर' जिल्द पहली पृष्ठ
२००-२१४ के अनेक पद-संकेतों में उपनिषद्, महाभारत, गीता, मनुस्मृति आदि ग्रन्थों से उद्धरण देकर धम्मपद की गाथाओं से उनकी समानता दिखाई है। इस विषय का अधिक तुलनात्मक अध्ययन भी किया जा सकता है।