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( २७५ ) कथाएँ सुत्त-पिटक, विनय-पिटक तथा अन्य पालि ग्रन्थों में तो पाई जाती हैं, किन्तु 'जातक' के वर्तमान रूप में संगृहीत नहीं है। अतः जातकों की संख्या में काफी कमी की भी और वृद्धि की भी सम्भावना है। उदाहरणतः, मुनिक जातक (३०) और सालूक जातक (२८६) की कथावस्तु एक ही मी है , किन्तु केवल भिन्न-भिन्न नामों से वह दो जगह आई है। इसके विपरीत 'मुनिक जातक' नाम के दो जातक होते हुए भी उनकी कथा भिन्न-भिन्न है। कहीं-कहीं दो स्वतंत्र जातकों को मिला कर एक तीसरे जातक का निर्माण कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, पञ्चपंडित जातक (५०८) और दकरक्खस जातक (५१७) ये दोनों जातक महाउम्मग्ग जातक (५४६) में अन्तर्भावित है। जो कथाएँ जातक-कथा के रूप में अन्यत्र पाई जाती है, किन्तु 'जातक' में संगृहीत नहीं है, उनका भी कुछ उल्लेख कर देना आवश्यक होगा। मज्झिम-निकाय का घटिकार सुत्तन्त (२।४।१) एक ऐसी ही जातक-कहानी है, जो 'जातक' में नहीं मिलती। इसी प्रकार दीप-निकाय का महागोविन्द सुत्नन्त (२।६) जो स्वयं 'जातक' की निदान-कथा में भी 'महागोविन्द-जातक' के नाम से निर्दिष्ट हुआ है, 'जातक' के अन्दर नहीं पाया जाता। इसी प्रकार धम्मपदट्ठकथा और मिलिन्दपञ्ह मे भी कुछ ऐमी जातक-कथाएँ उद्धृत की गई है, जो 'जातक' में संगृहीत नही है ।' अत: कुल जातक निश्चित रूप से कितने हैं, इसका ठीक निर्णय नहीं हो सकता। जब हम जातकों की संख्या के सम्बन्ध में विचार करते है तो 'जातक' से हमारा तात्पर्य एक विशेष शीर्षक वाली कहानी से होता है, जिसमें बोधिसत्व के जीवन-सम्बन्धी किसी घटना का वर्णन हो, फिर चाहे उस एक 'जातक' में कितनी ही अवान्तर कथाएं क्यों न गूंथ दी गई हो । यदि कुल कहानियाँ गिनी जाये तो 'जातक' में करीब तीन हजार कहानियाँ पाई जाती है। वास्तव में जातकों का संकलन सुत्तपिटक और विनय-पिटक के आधार पर किया गया है। मत्त-पिटक में अनेक ऐसी कथाएँ है जिनका उपयोग वहाँ उपदेश देने के लिए किया गया है। किन्तु वोधिसत्व का उल्लेख उनमें नहीं है । यह काम बाद में करके प्रत्येक कहानी को जातक का
१. विन्टरनित्ज-इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ११५, पद-संकेत ४ २. देखिये जातक (प्रथम खंड) पृष्ठ २१ (वस्तुकथा)