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( २७७ ) है।' चीनी यात्री फ-शिनयन ने पाँचवीं शताब्दी ईसवी में ५०० जातकों के चित्र लंका में अंकित हुए देखे थे। द्वितीय-तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व के भरहुत और साँची के स्तूपों में कम से कम २७ या २९ जातकों के चित्र उत्कीर्ण मिले हैं। ये मब तथ्य 'जातक' की प्राचीनता और उसके विकाम के सूचक है।
गयस डेविड्म का कथन है कि जातक का मंकलन और प्रणयन मध्य-देश में प्राचीन जन-कथाओं के आधार पर हुआ।४ विन्टरनित्ज़ ने भी प्रायः इसी मत का प्रतिपादन किया है। अधिकांश जातक बुद्धकालीन हैं। साँची और भरहुत के स्तृपों के पाषाण-वेप्टनियों पर उनके अनेक दश्यों का अङ्कित होना उनके पूर्व-अशोककालीन होने का पर्याप्त माक्ष्य देता है। 'जातक' के काल और कर्तत्व के सम्बन्ध में अधिक प्रकाश उसके माहित्यिक रूप और विशेषताओं के विवेचन से पड़ेगा।
प्रत्येक जातक-कथा पाँच भागों में विभक्त है (१) पच्चुप्पन्नवत्थु (२) अतीतवत्थु (३) गाथा (४) वेय्याकरण या अत्थवण्णना (५) समोधान । पच्चुप्पनवत्थु का अर्थ है वर्तमान काल की घटना या कथा । बुद्ध के जीवन काल में जो घटना घटी, वह पच्चुप्पन्नवत्थ है। उस घटना ने भगवान् को किसी पूर्व जन्म के वृत्त को कहने का अवसर दिया। यह पूर्व जन्म का वृत्त ही अतीतवत्थु है । प्रत्येक जातक का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग यह अतीतवत्थु ही है। इसी के अनुकूल पच्चुप्पन्नवत्थु कहीं-कहीं गढ़ ली गई प्रतीत होती है। पच्चुप्पन्नवत्थ के बाद एक या अनेक गाथाएं आती हैं। गाथाएं जातक के प्राचीनतम अंश हैं। वास्तव में गाथाएँ ही जातक हैं । पच्चप्पन्नवत्थु आदि पाँच भागों से समन्वित जातक तो वास्तव में 'जातकत्थवण्णना' या जातक की अर्थकथा है। गाथाओं के बाद प्रत्येक जातक में वेय्याकरण या अत्थवण्णता आती है। इसमें गाथाओं की व्याख्या और
१. पृष्ठ ८० (स्टीड द्वारा सम्पादित, पालि टैक्स्ट सोसायटी, १९१८) २. लेगो : रिकार्ड ऑव दि बुद्धिस्ट किंग्डम्स, पृष्ठ १०६ (ऑक्सफर्ड, १८८६) ३. रायस डेविड्स : बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ २०९ ४.बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ १७२; २०७-२०८ ५. इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ११३-११४; १२१-१२३