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( २८२ ) एकमत बटेरों का चिड़ीमार कुछ न बिगाड़ सका, परन्तु जब उनमें फूट पड़ गई तो सभी चिड़ीमार के जाल में फंस गये। तिनिर जातक (३७)--बदर, हाथी और तितिर ने आपस में विचार कर निश्चय किया कि जो ज्येष्ठ हो उसका आदर करना चाहिए। बक जातक (३८)--बगले ने मछलियों को धोखा दे दे कर एक एक को ले जाकर मार खाया । अन्न में वह एक केकड़े के हाथ से माग गया। कण्ह जातक (२९)--एक बैल ने अपनी बुढ़िया माँ को जिसने उसे पाला था मजदूरी से कमा कर एक हजार काण्ण ला कर दिये। बेळुक जातक (४३) तपस्वी ने साँप के बच्चे को पाला, जिसने उसे इस कर मार डाला। रोहिणी जातक (४५) रोहिणी नामक दामी ने अपने माता के मिर की मक्खियाँ हटाने के लिये जाकर माता को मार डाला। वानरिन्द जातक (५७) मगरमच्छ अपनी स्त्री के कहने से बानर का हृदय चाहता था। बानर अपनी चतुरता से बच निकला। कुदाल जातक (७०) कुद्दाल पंडित कुद्दाल के मोह में पड़ छ: बार गृहस्थ और प्रवजित हुआ। सीलवनागराज जातक (७२) वन में रास्ता भूले हुए एक आदमी की हाथी ने जान बचाई। खरस्मर जातक (७९) गाँव का मुखिया चोरों से मिल कर गाँव लुटवाता था। नाममिद्धि जातक (९७) 'पापक' नामक विद्यार्थी एक अच्छे नाम की तलाश में वहुत घूमा। अन्त में यह समझ कर कि नाम केवल बलाने के लिए होता है, वह लौट आया। अकालरावी जातक (११९) असमय शोर मचाने वाला मुर्गा विद्यार्थियों द्वारा मार डाला गया। बिळारवत जातक (१२८) गीदड़ धर्म का ढोंग कर चूहों को खाता था। गोध-जातक (१४१) गोह की गिरगिट के साथ मित्रता उमके कुल-विनाश का कारण हुई। विरोचन जातक (१४३) गीदड़ ने शेर की नकल कर के पराक्रम दिखाना चाहा। हाथी ने उसे पाँव से रौंद कर उस पर लीद कर दी। गुण जातक (१५७) दलदल में फंसे सिंह को सियार ने बाहर निकाला। मक्कट जातक (१७३) बन्दर तपस्वी का वेश बना कर आया। आदिच्चपटठान जातक (१७५) बन्दर ने सूर्य की पूजा करने का ढोंग बनाया। कच्छप जातक (१७८) जन्मभूमि के मोह के कारण कछुवे की जान गई। गिरिदन जातक (१८४) शिक्षक के लंगड़ा होने के कारण घोड़ा लँगड़ा कर चलने लगा। सीहचम्म जातक (१८९) सिंह की खाल पहन कर गया खेत चरता रहा। किन्तु बोलने पर मारा गया। महापिगंल जातक (२४०)