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( २४७ ) थेरगाथा में २५५ भिक्षओं के उद्गार हैं, जब कि थेरीगाथा में ७३ भिक्षुणियों के। थेरगाथा में १२७९ गाथाएँ (पद्य) है जो २१ निपातों (वर्गों) में विभक्त हैं। थेरीगाथा में ५२२ गाथाएँ है जो १६ निपातों में विभक्त है। वास्तव में थेरगाथा मे थेरीगाथा अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, क्योंकि यहाँ भिक्षुणियों की आत्मीयता और यथार्थवादिता अधिक स्पष्ट झलकती है। थेरगाथा में अन्तर्जगत् के अनुभवों की बहलता है, जबकि थेरीगाई सेयक्तिक ध्वनि प्रधान है। थेग्गाथा में मग्म्य प्राकृतिक वर्णनों की अधिकता है। भिक्षओं के ध्यान के प्रसंग में ये वर्णन वहाँ स्वभावतः आ गए हैं। किन्तु भिक्षुणियों ने अपने जीवन की वास्तविक परिस्थितियों पर ही अधिक पर्यवेक्षण किया है। दोनों के ही उद्गारों में जीवन के करुण पक्ष के अनुभव की अधिक अभिव्यक्ति है। फिर भी वहाँ निगगा नहीं है । बुद्ध-शामन का अवलम्बन पा कर दोनों ने ही उम गंभीर और गान्त सुख का स्पर्श किया है, जो जीवन की विषमताओं और कटताओं को घोल डालता है और उन पर मनुष्य की विजय का सूचक बनता है। किसी किमी भिक्षु के शब्दों में नारी के प्रति विरक्त भाव भी है। इसी प्रकार किसी किसी भिक्षुणी ने पुरुष के द्वारा उस पर किये गए अत्याचार का भी दुःखपूर्वक स्मरण किया है। मानव-जीवन की ये सामान्य विषमताएं है। इनमें हमें किसी विशेष सिद्धान्त को यहाँ निकालने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। अब हम थेर और थेरी गाथाओं से कुछ उद्धरण दे कर उनकी विषय-वस्तु की विशेषताओं को स्पष्ट करेंगे। स्थविर आतुम अपने अनुभव का वर्णन करते हुए कहते है-मैने वृद्ध, दुःखी, व्याधि से मारे हुए, समाप्त आयु-संस्कार वाले, पुरुप को इन आँखों से देखा । बस इन (दुःखों) से निष्क्रमण पाने के लिए मंने सारे मनोरम भोगों को छोड़ कर प्रवज्या ले ली।" स्थविर वल्लिय का अनुभव भी मार्मिक है, “मेरे बाल बनाने के लिए नाई मेरे पास आया।
का अनुवाद (परमत्थदीपनी के आधार पर भिक्षुणियों की जीवनियों के सहित, लेखक ने किया है, जो सस्ता साहित्य मंडल, नई दिली, द्वारा प्रकाशित हो चुका है)। १. जिण्णञ्च दिस्वा दुखितञ्च व्याधितं मतञ्च विस्वा गतमायुसंखयं । ततो अहं निक्वमितुन पजि पहाय कामानि मनोरमानि ॥गाथा ७३