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वाली कामना को सुनकर कही। यह वान बुद्ध के मुख से ही निकल सकती थी। बुद्ध, जिसने अपने एकमात्र पुत्र का जन्म होते समय उसे अपने उदीयमान विचारचन्द्र को ग्रसने के लिये राहु समझ कर 'राहुल' नाम दिया, “गह पैदा हुआ, बन्धन पैदा हआ।" या तो 'प्रजया किं करिष्यामः” ( हम सन्तान मे क्या करेंगे ) कहने वाले उपनिषदों के ऋषि या सम्यक् मम्बुद्ध ही इनना ऊंचा और निवृत्तिपरायण दृष्टिकोण ले सकते थे। १।८ में वर्णित आर्य मंगाम जी की कथा और २७ में प्रेम को छोड़ देने का उपदेश, ऐसे ही निवनि-परायण उपदेश है । नन्दवर्ग (वर्ग ३) में विशेपतः भगवान बुद्ध के मौमेरे भाई नन्द की कथा है । किस प्रकार यह विलामी युवक भगवान के उपदेश से विरक्त बन गया, यही इममें वर्णन किया गया है । यहाँ भी निवृत्ति का आदर्श ही सामने रक्खा गया है । नन्द पहले भगवान् की जामिनी पर अप्सराओं के लिये ब्रह्मचर्य का पालन करता है । किन्तु ब्रह्मचर्य का पालन करते-करते उमकी अप्सराओं सम्बन्धी इच्छा प्रहीण हो जाती है । भगवान् कहते है “नन्द ! जिम समय तुम्हारी मांसारिक आमक्ति से मुक्ति हो गई उमी समय में जामिनी से छट गया।" कुछ अन्य कथाएँ और उदगार भी इस वर्ग में सम्मिलित है । ३१५ में महामौद्गल्यायन की कायगतामति-भावना का वर्णन है । ३।१० में भगवान् ने कहा है कि अनासक्ति ही मुक्ति-मार्ग है । मेघिय-वर्ग (वर्ग ८) में मेघिय नामक भिक्षु की कथा है । यह भिक्ष भगवान् की सेवा में नियत था। एक दिन एक रमणीय आम्र-वन देख कर इसने वहां जाकर योग-साधन करने की भगवान् मे अनमति मांगी। भगवान ने कहा “मेघिय ! ठहरो, अभी मै अकेला हूँ, किसी दूसरे भिक्षु को आ जाने दो।" मेघिय ने भगवान् के आदेश को न माना और ध्यान करने चला गया। किन्तु वहाँ जाकर जैसे ही ध्यान के लिये बैठा उसके मन में पाप-वितर्क उठने लगे। शाम को फिर भगवान के पास लौटकर आया। भगवान ने उसे ध्यान-सम्बन्धी उपदेश दिया। इसी वर्ग में भिक्षुओं पर व्यभिचार के मिथ्यारोप का वर्णन है (४।८) । इस अवस्था में भी वे शान्त रहते हैं और बाद में उनकी निष्पापना सिद्ध हो जाती है। भगवान का एक ग्वाले ने मक्ग्वन और खीर मे आतिथ्य किया, इसका भी वर्णन इम वर्ग में आता है ( ८१३) । आदमियों की भीड़ से तंग आकर भगवान को पालिलेग्यक के रक्षितवन मे । कान्त-वास करते भी इम वर्ग में हम देखते