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( २२५ ) ने अपने अलग अलग संग्रह बना लिए जिनके कुछ उदाहरण हम धम्मपद के ऊपर निर्दिष्ट स्वरूपों में देख चुके है। अब हम बुद्ध-वचनों के एक दूसरे संग्रह पर आते है। उदान'
'उदान' भगवान् बुद्ध के मुख से समय-समय पर निकले हुए प्रीति-वाक्यों का एक संग्रह है। "भावातिरेक से कभी कभी सन्तों के मुख से जो प्रीति-वाक्य निकला करते है, उन्हें 'उदान' कहते हैं।" "उदान' में भगवान बद्ध के ऐमे गम्भीर और उनकी समाधि-अवस्था के सचक शब्द संग्रहीत है जो उन्होंने विशेष अवसरों पर उच्चरित किये । भगवान् द्वारा उच्चरित वचन अधिकतर गाथाओं के रूप में हैं और जिन अवसरों पर वे उच्चरित किये गये, उनका वर्णन गद्य में है। गद्यभाग निश्चयतः संगीतिकारों की रचना है जिसे उन्होंने बद्ध-जीवन के प्रत्यक्ष सम्पर्क से ग्रथित किया है। उसकी प्रामाणिकता के विषय में यही कहा जा सकता है कि विनय-पिटक के चुल्लवग्ग और महावग्ग में तथा महापरिनिबाणसुत्न जैसे सुत्त-पिटक के अंशों में बुद्ध-जीवन का जो चित्र उपस्थित किया गया है उसकी वह अनुरूपता में ही है। गदा-भाग के अन्त में आने वाले 'उदानों में तो वास्तविक वद्ध-वचन होने की सगन्ध आती ही है। उनमें जैसे शास्ता ने अपने आपको अनुप्राणित कर दिया है, अपनी प्राण-ध्वनि ही फक दी है, ऐसा मालम पड़ता है। वास्तव में 'उदान' का अर्थ भी यही है। 'उदान' की सब से बड़ी विशेषता है बौद्ध जीवन-दर्शन का उसके अन्दर स्पष्टतम प्रस्फुटित स्वरूप । बुद्ध-जीवन के अनेक प्रसंगों के अतिरिक्त चित्त की परम शान्ति, निर्वाण, पुनर्जन्म. कर्म और आचार-तन्व सम्बन्धी गम्भीर उपदेश 'उदान' में निहित है।
_ 'उदान' में ८ वर्ग (वग्ग) है और प्रत्येक वर्ग में प्रायः दस सुत्त है। केवल सातवें वर्ग में ९ सुत्त है। ८ वर्गों के नाम इस प्रकार है (१) बोधि वर्ग (बोधि
१. महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भदन्त आनन्द कौसल्यायन तथा भिक्षु जगदीश
काश्यप द्वारा देव-नागरी लिपि में सम्पादित, तथा उत्तम भिक्षु द्वारा प्रकाशित, सारनाथ १९३७ ई० । भिक्षु जगदीश काश्यप ने इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद किया है, महाबोधि सभा, सारनाथ, द्वारा प्रकाशित, बुद्धाब्द. २४८२ ।