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सभी प्राणी सुखी हों -- सब्बे सत्ता भवन्तु सुखितत्ता । ब्रह्मविहार भी तो यही है— ब्रह्ममेतं विहारं इधामाहु !
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खुद्दक पाठ के उपर्युक्त ९ सुत्तों में से मंगल-सुत्त, रतन सुत्त, और मेत्तसुत्त सुत्तनिपात म भी हैं । सुत्तनिपात में मंगल-सुत्त का नाम महामंगलसुत्त अवश्य है । इसी प्रकार तिरोकुड्ड सुत्त पेतवत्थु में भी है । तीन शरण और दस शिक्षापदों के विवरण विनय-पिटक के आधार पर संकलित हैं । कुमारपञ्ह सुत्त को भी विनय-पिटक या दीघ - निकाय के संगीति-परियाय और दसुत्तर जैसे सुत्तों अथवा अंगुत्तर निकाय के विशाल तत्सम्बन्धी भांडार में से संकलित कर लिया गया है । 'कायगतासति' के रूप में शरीर के ३२ आकारों का वर्णन दीघ और मज्झिमनिकायों के क्रमशः महासतिपट्ठान और सतिपट्ठान सुत्तों के वर्णनों की अनुलिपि है । केवल अन्तर इतना है कि वहाँ ३१ अङ्गों का वर्णन है जब कि यहाँ एक और ( मत्थके मत्थलुंगं - - माथे का गूदा ) बढ़ा दिया गया है । कायगता -सति ( शरीर की गन्दगियों और अनित्यता पर विचार) का विधान बौद्ध योग में प्रारम्भ से ही है । दीघ और मज्झिमनिकायों के उपर्युक्त सुत्तों के अतिरिक्त संयुत्त निकाय के कस्सप सुत्त में भी भगवान् बुद्ध ने महाकाश्यप को 'कायगता सति' का ध्यान करने का उपदेश दिया है । धम्मपद २१|१० में भी भिक्षुओं को 'कायगतासतिपरायण' होने को कहा गया है । 'उदान' में भगवान् बुद्ध के योग्य शिष्य महामौद्गल्यायन और महाकात्यायन को काय गता - सति की भावना करते दिखलाया गया है १ । 'विसुद्धि-मग्ग' ( पाँचवीं शताब्दी) में इस सम्बन्धी ध्यान का विस्तृत वर्णन किया गया है ।
खुद्दक पाठ के समान, किन्तु आकार में उससे बड़ा, एक और संग्रह पालि साहित्य में प्रसिद्ध है। इसका नाम 'परित' या 'महापरित' है । 'परित' शब्द का अर्थ है 'परित्राण' या 'रक्षा' । भिक्षुओं और गृहस्थों की रक्षा के उद्देश्य
ang walaga kamna jangka mem
१. क्रमशः पृष्ठ ३८ एवं १०५ ( भिक्षु जगदीश काश्यप का अनुवाद)
२. विसुद्धिमग्ग ८०४२-१४४; देखिये ११२४८ - ८१ भी ( धर्मानन्द कोसम्बी का संस्करण)