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एक 'मन्त्र' है । शेष जीव जगत् के साथ मैत्री स्थापित कर इस 'मन्त्र' की सत्यता देखी जा सकती है । 'परित' में संगृहीत सुत्तों की भावनाएँ बड़ी मङ्गलमय और उदात्त हैं । उनमें चित्त को डुबो देने पर शरीर और मन प्रसन्नता से न भर जाय, यह असम्भव है । प्रसन्नता ( चित्त प्रसाद) ही तो स्वास्थ्य और मङ्गलों की जननी है । भिक्षुगण परित पाठ के अन्त में ठीक ही संगायन करते हैं-- सब्बीतियो विवज्जन्तु सब्बरोगो विनस्सतु । मा ते भवत्वन्तरायो सुखी दीघायुको भव ।। तेरी सारी आपदाएँ दूर हों, सब रोग नष्ट हो जाय, तुझे विघ्न न हो, तू सुखी और दीर्घायु हो ।
धम्मपद'
बौद्ध साहित्य का सम्भवतः सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है । एक प्रकार इसे बौद्धों की गीता ही कहना चाहिये । सिंहल में बिना धम्मपद का पारायण किये किसी भिक्षु की उपसम्पदा नहीं होती । बुद्ध-उपदेशों का धम्मपद से अच्छा संग्रह पालि साहित्य में नहीं है । इसकी नैतिक दृष्टि जितनी गम्भीर है, उतनी ही वह प्रसादगुणपूर्ण भी है । धम्मपद में कुल मिलाकर ४२३ गाथाएँ हैं, जो २६ वर्गों में बँटी हुई हैं। प्रत्येक वर्ग में गाथाओं की संख्या इस प्रकार है-
वर्ग
९ यमक वग्ग
२ अप्पमाद वग्ग
गाथाओं की संख्या
२०
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यह तो एक गम्भीर नैतिक उपदेश है। अधिकतर बुद्ध वचनों का यही हाल है, फिर चाहे उनका उपयोग उत्तरकालीन बौद्ध जनता किसी प्रकार करने लगी हो ।
१. धम्मपद के अनेक संस्करण और अनुवाद महापंडित राहुल सांकृत्यायन और भदन्त अनुवाद विशेष उल्लेखनीय हैं ।
हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं ।
आनन्द कौसल्यायन के