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________________ ( २१४ ) एक 'मन्त्र' है । शेष जीव जगत् के साथ मैत्री स्थापित कर इस 'मन्त्र' की सत्यता देखी जा सकती है । 'परित' में संगृहीत सुत्तों की भावनाएँ बड़ी मङ्गलमय और उदात्त हैं । उनमें चित्त को डुबो देने पर शरीर और मन प्रसन्नता से न भर जाय, यह असम्भव है । प्रसन्नता ( चित्त प्रसाद) ही तो स्वास्थ्य और मङ्गलों की जननी है । भिक्षुगण परित पाठ के अन्त में ठीक ही संगायन करते हैं-- सब्बीतियो विवज्जन्तु सब्बरोगो विनस्सतु । मा ते भवत्वन्तरायो सुखी दीघायुको भव ।। तेरी सारी आपदाएँ दूर हों, सब रोग नष्ट हो जाय, तुझे विघ्न न हो, तू सुखी और दीर्घायु हो । धम्मपद' बौद्ध साहित्य का सम्भवतः सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है । एक प्रकार इसे बौद्धों की गीता ही कहना चाहिये । सिंहल में बिना धम्मपद का पारायण किये किसी भिक्षु की उपसम्पदा नहीं होती । बुद्ध-उपदेशों का धम्मपद से अच्छा संग्रह पालि साहित्य में नहीं है । इसकी नैतिक दृष्टि जितनी गम्भीर है, उतनी ही वह प्रसादगुणपूर्ण भी है । धम्मपद में कुल मिलाकर ४२३ गाथाएँ हैं, जो २६ वर्गों में बँटी हुई हैं। प्रत्येक वर्ग में गाथाओं की संख्या इस प्रकार है- वर्ग ९ यमक वग्ग २ अप्पमाद वग्ग गाथाओं की संख्या २० १२ यह तो एक गम्भीर नैतिक उपदेश है। अधिकतर बुद्ध वचनों का यही हाल है, फिर चाहे उनका उपयोग उत्तरकालीन बौद्ध जनता किसी प्रकार करने लगी हो । १. धम्मपद के अनेक संस्करण और अनुवाद महापंडित राहुल सांकृत्यायन और भदन्त अनुवाद विशेष उल्लेखनीय हैं । हिन्दी भाषा में उपलब्ध हैं । आनन्द कौसल्यायन के
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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