________________
( २०४ ) शेष १० ग्रन्थों के साथ है। इन सब ग्रन्थों के संकलन की निश्चित तिथि के सम्बन्ध में तो कुछ नहीं कहा जा सकता, किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इनमें जो अधिक उत्तरकालीन है वे भी अशोक के काल से बाद के नहीं हैं। धम्मपद, सत्त-निपात, उदान और इतिवृत्तक के वाद काल-क्रम की दृष्टि से जातक और थेर-थेरी गाथाओं का स्थान कहा जा सकता है। 'जानक' में बुद्ध के पूर्व -जन्म की कथाएँ है। मूल जातक में ऐसी केवल ५०० कहानियाँ थीं। चुल्ल-निद्देस में ५०० जातक-कहानियों का ही निर्देश हुआ है। फाहयान ने भी सिंहल में ५०० जातक-कहानियाँ के चित्र अंकित देखे थे । बाद में जातक-कहानियों की संख्या बढ़कर ५४७ हो गई। मूल जातक की प्राचीनता इस बात से प्रकट होती है कि तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व के साँची और भारहुन के स्तूपों में उनकी अनेक कहानियों के दृश्य अंकित किये गये है।' अत: जातकों का काल उस से काफी पहले का होना चाहिये । थेर-और थेरीगाथाओं में बुद्ध-कालीन भिक्षुओं और भिक्षुणियों की गाथाएँ है। केवल थेरगाथा की कुछ गाथाएँ अशोक के समय के भिक्षुओं की बताई जाती हैं।४ अतः सम्भव है थेरगाथा ने भी अपना अन्तिम स्वरूप अशोक के काल में ही प्राप्त किया हो और तृतीय संगीति के अवसर पर उसका संगायन हुआ हो। जातकों के बोधिसत्व-आदर्श पर ही आधारित बुद्धवंम और चरिया
१. पृष्ठ ८० २. रिकार्ड ऑव दि बुद्धिस्ट किंग्डम्स, ऑक्सफर्ड १८८६, पृष्ठ १०६ (जे० लेग
का अनुवाद) ३. रायस डेविड्स : बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ २०९; हल्श : जर्नल ऑव रायल
एशियाटिक सोसायटी, १९१२, पृष्ठ ४०६; इस सम्बन्धी अधिक साहित्य के परिचय के लिये देखिये विटरनि-ज : हिस्ट्री ऑव ईडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १६, पदसंकेत ३; पृष्ठ ११३ पद संकेत ३ ४ गाथाएँ १६९-७० अशोक के कनिष्ठ भ्राता वीतसोक की रचनाएँ है। मिलाइये "इमस्मिं बुद्धप्पादे अट्ठारस वस्साधिकानं द्विन्नं वस्स सतानं मत्थके धम्मासोकरो कणिट्ठ भाता हुत्वा निब्बत्ति । तस्स वीतसोकोति नाम अहोसि।" (वीतसोकथेरस्स गाथावण्णना ।)