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. ( १५५ ) ६९. गुलिस्सानि-सुत्त--गुलिस्सानि नामक आरण्यक भिक्षु को लक्ष्य कर धर्म
सेनापति सारिपुत्र का भिक्षुओं को उपदेश। ७०. कीटागिरि-सुत्त--भिक्षु-नियमों सम्बन्धी उपदेश, विशेषतः एक समय
भोजन करने के प्रसंग को लेकर। (८) परिब्बाजक-वग्ग ७१. तेविज्जवच्छगोत्त-सुत्त---भगवान बुद्ध त्रैविद्य हैं। ७२. अगिवच्छगोत्त-सुत्त--अगिवच्छगोत्त नामक परिव्राजक को भगवान् की
शिष्यत्व-प्राप्ति। ७३. महावच्छगोत्त-सुत्त--उपासकों और भिक्षुओं के कर्तव्य । ७४. दीघनख-सुत्त--दीघनख परिव्राजक से भगवान् का संलाप । ७५. मागन्दिय-सुत्त--मागन्दिय नामक परिव्राजक को कामनाओं के त्याग का
उपदेश। ७६. सन्दक-सुत्त--सन्दक नामक परिव्राजक को आनन्द का उपदेश । १७. महासकुलुदायि-सुत्त-महासकुलुदायि परिव्राजक को उपदेश। ७८. समणमंडिका-सुत्त--शुद्ध आचरण पर भगवान् बुद्ध का उपदेश। ७९. चूलसकुलु दायि-सुत्त-निगण्ठ नाथपुत्त और उनका चातुर्याम संवर । ८०. बेखनस-सुत्त--पूर्वोक्त के समान ही विषय-वस्तु। (९) राजवग्ग ८१. घाटिकार-सुत्त-भगवान् बुद्ध के एक पूर्वजन्म का विवरण । ८२. रट्ठपाल-सुत्त-राष्ट्र-पाल की प्रव्रज्या का विवरण । कुरुदेश की राजधानी
थुल्लकोठित का उल्लेख है । राष्ट्रपाल यहीं के निवासी थे । ८३. मखादेव-सुत्त--बुद्ध के एक पूर्व जन्म की कथा। ८४. माधुरिय-सुत्त--चारों वर्गों की समता का उपदेश आयुष्मान् कात्यायन
द्वारा। बुद्ध-निर्वाण के बाद आयुष्मान् कात्यायन का मथुरा के राजा
अवन्तिपुत्र से मथुरा के गुन्दावन में संवाद । ८५. बोधिराजकुमार-सुत्त--भगवान् बुद्ध की जीवनी, स्वयं उनके शब्दों में, ___गृहत्याग से बुद्धत्व-प्राप्ति तक। ८६. अंगुलिमाल-सुत्त--डाकू अंगुलिमाल का जीवन-परिवर्तन । ८७. पियजातिक-सुत-सम्पूर्ण दुःख प्रेम से उत्पन्न होने वाले हैं।