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मैं कहता हूँ। पुनः ब्राह्मण ! यहाँ एक श्रमण या ब्राह्मण सम्यक् ब्रह्मचारी होन का दावा करता है और वह न प्रत्यक्ष स्त्री के साथ सहवास करता, न उसमे उबटन आदि लगवाना, न उसके साथ हमी-मजाक करता, न उसे आंख गड़ाकर देखना, किन्तु वह दीवार या चहारदीवारी की ओट से छिपकर स्त्री के शब्दों को मुनता है, जब कि वह हँस रही हो, या बात कर रही हो, या गा रही हो, या रो रही हो, वह उममें रम लेता है . . . . . . दुःख से नहीं छूटता-मैं कहता हूँ। पुनः ब्राह्मण ! यहाँ एक श्रमण या ब्राह्मण सम्यक् ब्रह्मचारी होने का दावा करता है और वह न स्त्री के साथ प्रत्यक्ष महवाम करता, न स्त्री मे उबटन लगवाता, न उसके साथ हंसी-मजाक करता, न उसको नजर भर कर देखता है जब कि वह गा रही हो या रो रही हो. किन्तु वह अपने उन हमी-मजाकों, सम्भाषणों और क्रीड़ाओं को स्मरण करता है जो उसने पहले स्त्री के साथ की थीं, वह उनमें ग्म लेता है . . . . . . दुःख मे नहीं छूटता-मैं कहता हूँ। पुनः ब्राह्मण ! यहाँ एक श्रमण या ब्राह्मण सम्यक् ब्रह्मचारी होने का दावा करता है और वह न स्त्री के साथ प्रत्यक्ष सहवाम करता, न स्त्री से उबटन लगवाता, न उसके साथ हमी-मजाक करता, न उमको आंग्ख गड़ा कर देखता, न उसके साथ किये हुए अपने पुगने हंसी-मजाकों, सम्भाषणों और क्रीड़ाओं आदि को ही स्मरण करता है, किन्तु वह किसी गृहस्थ या गृहस्थ-पुत्र को पूरी तरह पाँच प्रकार के (शब्द, स्पर्श, रूप, रम, गन्ध सम्बन्धी) विषयों में समर्पित, संयक्त हो, विलास करते देखता है, वह उममें ग्म लेता है . . . . . .दुःख मे नहीं छूटता--मै कहता है। पुनः ब्राह्मण ! यहाँ एक श्रमण या ब्राह्मण सम्यक् ब्रह्मचारी होने का दावा करता है और न वह न स्त्री के माथ प्रत्यक्ष महवाम करता, न स्त्री से उबटन लगवाता, न उसके साथ हंसी-मजाक करता. न उसको आँख गड़ाकर देखता, न उसके साथ किये हुए अपने पुगने हंसी-मजाकों को स्मरण करता, न किसी गृहस्थ या गृहस्थ-पुत्र को कामासक्त होकर मुख-विहार करते देव कर प्रसन्न होता, किन्तु वह किसी देव-योनि में जन्म लेने की अभिलापा से ब्रह्मचर्य का आचरण करता है और मोचता है कि इस प्रकार के शील, तप, व्रत या ब्रह्मचर्य मे में देव हो जाऊंगा या देवोंमें कोई, वह इममें ग्म लेता है, इसकी इच्छा करता है, इसमें प्रमन्नता अनभव करता है । ब्राह्मण ! यह भी ब्रह्मचर्य का वंडित