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कुसीनारा ( मल्ल - प्रदेश में), नलकपान ( कोशल ), कम्मासदम्म ( कुरु- प्रदेश ) आदि कस्बों और श्रावस्ती, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र आदि अनेक नगरों के वर्णन हैं जो बुद्ध-कालीन भारत के वातावरण को आज भी हमारे लिये सजीव बनाते है ।
उ - खुद्दक निकाय
खुद्दक निकाय के स्वरूप की अनिश्चितता ।
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खुद्दक निकाय सुत्त-पिटक का पाँचवाँ मुख्य भाग है । पहले चार निकायों की सी एकरूपता यहाँ नहीं मिलती। खुद्दक निकाय छोटे-छोटे ( खुद्दक ) स्वतन्त्र ग्रन्थों का संग्रह ( निकाय) है । सभी ग्रन्थ छोटे भी नहीं हैं । कुछ तो ( जैसे जातक आदि ) काफी बड़े भी है । भाषा-शैली में भी समानता नहीं है । कुछ विशुद्ध पद्यात्मक और कुछ गद्य-पद्य मिश्रित रचनाएँ हैं । काव्य, आख्यान, गीत, यही खुद्दक निकाय के विषय हैं । निश्चयतः खुद्दक निकाय के विषय और शैली की सब से बड़ी विशेषता उसकी विविधरूपता ही है । जैसा अंशत: दूसरे अध्याय में दिखाया जा चुका है, वर्गीकरण के भेद से खुद्दक निकाय की ग्रन्थ-संख्या में भी पर्याप्त भेद पाया जाता है ।
सुत्तपिटक के
अङ्ग के रूप में
सामान्यतः खुद्दक-निकाय सुत्तपिटक का एक अङ्ग है । इस रूप में खुद्दक निकाय में पन्द्रह ग्रन्थ सम्मिलित हैं, जिनकी गणना नीचे लिखे क्रम से आचार्य बुद्धघोष ने की है -
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१ खुद्दक पाठ
२ धम्मपद
३ उदान
४ इतिवृतक
५ सुन - निपात
६ विमानवत्थु
'७ पेतवत्थु
८ थेरगाथा
१ थेरी गाथा
१० जातक
१. सुमंगल विलासिनी, भाग प्रथम, पृष्ठ १७ ( पालि टैक्स्ट सोसायटी का
संस्करण )