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( १९७ ) ११ निद्देस
१४ बुद्धवंस १२ पटिसम्भिदामग्ग
१५ चरियापिटक १३ अपदान
निद्देस के दो भाग चलनिद्देम और महानिद्देस है। उनको दो स्वतंत्र ग्रन्थ मान कर गिनने मे उपर्युक्त ग्रन्थ-संख्या १६ हो जाती है। किन्तु स्थविरवादी वौद्ध परम्परा १५ ही ग्रन्थ मानती है। "पण्णरसभेदो खुद्दक-निकायो"। आचार्य बुद्धघोष ने हमें सूचना दी है कि प्रथम संगीति के अवसर पर मज्झिमनिकाय का मंगायन करने वाले (मज्झिम-भाणक) भिक्षु उपर्युक्त १५ ग्रन्थों को सत्त-पिटक के अन्तर्गत खुद्दक-निकाय में मम्मिलिन मानते थे।' खुद्दक-निकाय अभिधम्म-पिटक के अन्तर्गत भी
किन्तु एक दूसरी परम्परा उसी समय से खुद्दक-निकाय को सुत्त-पिटक के अन्तर्गत मानने के विपक्ष में थी। यह दीघ-निकाय का संगायन करने वाले (दीघ-भाणक) भिक्षुओं की परम्परा थी। ये भिक्षु खुद्दक-निकाय को सुत्तपिटक के अन्तर्गत न मान कर उसे अभिधम्म-पिटक के अन्तर्गत मानते थे। ग्रन्थ-संख्या के विषय में भी मतभेद था। इन्हें खुद्दक-निकाय के सिर्फ निम्नलिखित ११ ग्रन्थ, जिन्हें वे खुद्दक-ग्रन्थ कहते थे मान्य थे। आचार्य बुद्धघोष ने इन ग्रन्थों की सूची इस प्रकार दी है २--- १ जातक
७ इतिवृत्तक २ निद्देस
८ विमानवत्थु ३ पटिसम्भिदा मग्ग
९ पेतवत्थु ४ सत्त-निपात
१० थेरगाथा .. ५ धम्मपद
११ थेरीगाथा ६ उदान
१. मझिमभाणका पन . . . . . सबपि तं खुद्दक-गन्धं सुतन्तपिटके परिया
पणं ति वदन्ति । सुमंगलविलासिनी की निदानकथा । २. ततो परं जातक. . . . . थेर-थेरी गाथाति इमं तन्तिं संगायिन्वा 'खुद्दक