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१- सगाथ-वम्ग १. देवता-संयुत्त-देवताओं ने भगवान् से कुछ प्रश्न पूछे हैं, जिनका उन्होंने उत्तर दिया है। काम-वासना, पुनर्जन्म, मिथ्या मतवाद और अविद्याश्रित इच्छाओं का किस प्रकार भगवान् ने दमन किया है, यह यहाँ बताया गया है। पाप और आसक्ति मुक्ति पाने का मार्ग भी भगवान् ने यहाँ बताया है।
२. देवदत्त-संयुत्त-देव-पुत्रों के कुछ प्रश्नों का उत्तर भगवान् ने दिया है। उन्होंने कहा है कि सुख-प्राप्ति का एक मात्र उपाय क्रोध-त्याग और सत्संगति ही है।
३. कोसल-संयुत्त-यह सम्पूर्ण संयुत्त कोशलराज प्रसेनजित् (पसेनदि) के विषय में है। प्रसेनजित् पहले बावरि नामक ब्राह्मण का शिष्य था। बाद में वह बुद्ध-धर्म में गृहस्थ-शिष्य (उपासक) के रूप में प्रविष्ट हो गया। मगधराज अजातशत्रु (अजातसत्तु) और प्रसेनजित् के बीच युद्ध होने का भी उल्लेख इस संयुत्त में मिलता है । यह युद्ध काशी-प्रदेश के ऊपर हुआ। प्राथमिक विजय अजातशत्र की हुई, किन्तु बाद में वह पराजित किया गया और प्रसेनजित् उसे बन्दी बनाकर कोशल ले गया। वहाँ उसने अपनी पुत्री वज्रा (वजिरा) का उसके साथ पाणि-ग्रहण कर काशी-प्रदेश उसे भेंट-स्वरूप प्रदान किया। __४. मार-संयुत्त-बुद्ध और उनके शिष्यों की मार-विजय का वर्णन है। बुद्धत्त्व-प्राप्ति के बाद भी मार ने बुद्ध को ब्रह्मचर्य के जीवन से विचलित करने के लिये प्रभत प्रयत्न किया। ढेले बरसाये, पत्थर फेंके, अनेक प्रकार के भय दिखलाये, यहाँ तक कि 'पंचशाल' नामक गाँव के गृहस्थों को कहा कि इस महाश्रमण को भोजन मत दो। एक दिन भगवान् को भिक्षा भी नहीं मिली। धुला-धुलाया रीता पात्र लेकर लौट आये। किन्तु मार के ये सब प्रयत्न विफल हए और वह बद्ध और उनके शिष्यों को ब्रह्मचर्य के जीवन से विचलित नहीं कर सका।
५. भिक्खनी-संयुत्त--दस भिक्षुणियों के सुन्दर काव्य-मय आख्यान हैं। किस प्रकार गोतमी, उत्पलवर्णा (उप्पलवण्णा) वज्रा (वजिरा) आदि भिक्षुणियाँ बुद्ध-मार्ग का अनुगमन करती हुई मार पर विजय प्राप्त करती हैं, इसी का सुन्दर काव्य-मय वर्णन है।
६. ब्रह्मा-संयुत्त-बुद्धत्त्व-प्राप्ति के बाद बुद्ध को उपदेश करने की इच्छा नहीं हुई । तृष्णा-विनाश का यह स्वाभाविक परिणाम था। विमुक्ति-सख का