________________
( १८२ )
६. छक्क-निपात--छ: अनुस्मृति-स्थान, छ: आध्यात्मिक आयतन, छ: अभिजेय आदि, आदि।
७. मनक-निपात--सात सम्बोध्यङ्ग, सात अनुगय, मात मध्दर्म, मात संज्ञाएँ, सात मत्पुरुष-धर्म आदि, आदि ।
८. अट्ठक-निपात--आर्य अष्टाङ्गिक-मार्ग. आठ आरब्ध वस्तु, आठ अभिभ-आयतन, आट विमोक्ष, आदि, आदि।
९. नवक-निपात--नव तृष्णामूलक, नव सत्वावास, आदि, आदि । १०. दसक-निपात--दस तथागत-वल, दम आर्य-वास आदि, आदि । ११. एकादसक-निपात--निर्वाण-प्राप्ति के ग्यारह उपाय, आदि, आदि ।
किन्तु इस उपर्युक्त सूची मात्र मे अंगत्तर-निकाय के विषय या उसके महत्त्व को नहीं समझा जा सकता। उसके लिये हमें उद्धरणों से उसके विषय की मूल बुद्ध-वचनों के रूप में प्रामाणिकता और बुद्ध-कालीन इतिहास के लिये उसके महत्त्व को हृदयङ्गम करना होगा। पहले एकक-निपात को ही लीजिये। धम्म-विनय की दृष्टि से ही अंगुत्तर-निकाय के प्रथम निपात में उद्धृत इस बुद्ध-वचन को देखिये "नाहं भिक्खवे ! अञ्ज एक धम्मपि समनुपस्सामि यो एवं महेतो अनत्थाय संवनति, यदिदं भिवखवे पापमित्तता । पापमित्तता भिक्ग्ववे महतो अनत्थाय संवननि।" इसका अर्थ है "भिक्षुओ। मैं किसी भी दूसरी चीज को नहीं देखता जो इतनी अधिक अनर्थकर, हो, जितनी पाप-मित्रता । भिक्षओ! पाप-मित्रता बहत अनर्थकारी है ।" जो दीघ, मज्झिम
और संयत्त निकायों में निहित वुद्ध-वचनों की आत्मा और बाह्याभिव्यक्ति से परिचित हैं वे यहाँ उनकी अपेक्षा कुछ विभिन्नता नहीं देख सकते। अतः केवल इसीलिये कि संगीतिकारों ने कुछ बुद्ध-वचनों को संख्याबद्ध वर्गीकरण में बाँधकर रख दिया है, उनकी मौलिकता या महत्ता में कोई अन्तर नहीं आता। अंगत्तर-निकाय की सब सामग्री अन्य निकायों मे भी ली हुई नहीं है, बल्कि उममें बहुत सी ऐसी भी सूचना है जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। इसका भी एक उदाहच्ण एकक-निपात के ही 'एतदग्गवग्ग' के उस महत्त्वपूर्ण विवरण में पाते हैं, जिसमें बताया गया है कि भगवान् बुद्ध के किम-किम भिक्ष, भिक्षणी, उपासक, या उपासिका, ने माधना के किस-किम विभाग में दक्षता या विशेषता प्राप्त की थी। महापंडिन गहुल मांकृत्यायन द्वारा अनुवादित इस अंग को,