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देव देवी के साथ संवास करता है । कैसे गृहपनियो ! शव शव के साथ संवाम करता है ? यहाँ गृहपतियो ! पति हिंसक चोर, दुराचारी, झूठा, नगाबाज, दुःशील, पाप-धर्मा, कंजूसी की गन्दगी से लिप्त चित्तवाला, श्रमण-ब्राह्मणों को दुर्वचन कहने वाला हो, इस प्रकार गृह में वास करता हो और उसकी भार्या भी उमी के समान हिमक, चोर, दुराचारिणी.. श्रमण-ब्राह्मणों को दुर्वचन कहने वाली हो। उस समय गृहपतियो ! गव गव के साथ संवास करता कैसे गृपतियो ! गव देवी के साथ संवास करता हूँ ? गृहपतियो ! पति हिंसक, चोर, दुराचारी... श्रमण-ब्राह्मणों को दुर्वचन कहने वाला हो, किन्तु उसकी भाव अ-हिंसा-रन चोरी रहित, सदाचारिणी, सच्ची, नशा - विरत, सुशीला, कल्याण-धर्म-युक्त, मल-मात्मर्य- रहित, श्रमण-ब्राह्मणों को दुर्वचन न कहने वाली हो. तो गृहपतियो ! शव देवी के साथ संवास करता है। कैसे गृहपतियो ! देव ाव के साथ संवास करता है ? गृहपतियो । पति हो अहिंसारत, चोरी-रहित, सदाचारी उसकी भार्या हो हिमा-रत चोर, दुगचारिणो ....पतियो देव शव के साथ संवास करता है । कैसे गृहपतियो ! देव देवी के साथ संवास करता है ? गृहपतियो ! पति अहिंसारत, चोरी-रहित, सदाचारी..... 1. उसकी भार्या भी अहिंसा-रत, चोरी-रहित, सदाचारिणी. गृहपतियो ! देव देवी के साथ संवास करता है ।" इसी प्रकार एकादस - निपान के महानाम-सुत्त में हम भगवान् को महानाम शाक्य के प्रति जो गृहस्थ था, बुद्ध, धर्म, संघ आदि की अनुस्मृति करने का उपदेश देते हुए देखते हैं "महानाम !" तुम चलने भी भावना करो, खड़े भी, लेटे भी, कर्मान्तिक ( खेती आदि) का अधिष्ठान (प्रबंध) करते भी, पुत्रों से घिरी शय्या पर भी ।" बुद्ध ने गृहस्थ, भिक्षु, सब के लिये अप्रमाद या सतत पुरुषार्थ पर कितना अधिक जोर दिया. यह हमने दीघ, मज्झिम और संयुत्त निकायों के विवरण में देखा है । अंगुत्तरनिकाय के छक्कक निपात के पधानीयसुत में भी हम भगवान को भिक्षुओं के प्रति यही उपदेश करते देखते हैं। श्रावस्ती मैं अनाथपिंडिक के जेतवन- आगम में कुछ नये प्रविष्ट भिक्षु सूर्योदय तक खर्राटे ले मो रहे हैं । भगवान् भिक्षुओं को विज्ञापित करते हैं, “भिक्षुओ ! सूर्योदय तक खर्राटे मार कर सोते हो। तो क्या मानते हो भिक्षुओ ! क्या तुमने देखा या सुना है सूत्रभक्ति (अभिषेक प्राप्त) क्षत्रिय राजा को इच्छानुसार गयन-सुख. सर्शनल, आलस्य-सव के साथ विहार करते और जीवन पर्यन्त राज्य करते या