________________
( १७७ )
ब्राह्मणों को भी बुद्ध के ज्ञान यज्ञ का लोहा अवय मानना पड़ा । भारद्वाजं को उद्बोधित करते हुए भगवान् उसे कहते हैं "ब्राह्मण ! लकड़ी जला कर शुद्धि मन मानो। यह तो बाहरी चीज है । पंडित लोग उसमे शुद्धि नहीं बतलाते जो बाहर से भीतर की शद्धि है । ब्राह्मण ! मैं दारु-दाह छोड़ भीतर की ज्योति जलाता हूँ । नित्य आग वाला. नित्य एकान्त-चित्त वाला हो, में ब्रह्मचर्य - पालन करता हूँ । ब्राह्मण ! यह तेरा अभिमान खरिया का भार है, त्रोध धुवा है: मिथ्या भापण भस्म है, जिह्वा स्रुवा हूँ और हृदय ज्योति का स्थान है । आत्मा के दमन करने पर पुरुष को ज्योति प्राप्त होती है । ब्राह्मण ! गील तीर्थ सन्तजनों से प्रशंसित, निर्मल धर्म रूपी सरोवर है । इसी में वेद को जानने वाले (वेद) पुरुष नहाकर बिना भीगे गात्र के पार उतरते हैं । ब्रह्मप्राप्ति, सत्य, धर्म, संयम और ब्रह्मचर्य पर आश्रित हैं । तू ऐसे हवन किये हुआ को नमस्कार कर । मैं उनको पुरुषों को संयमी बनाने के लिये सारथी-स्वरूप कहता हूँ ।" इस प्रकार इस निकाय में हमें बुद्ध जीवन, बुद्ध और उनके शिष्य, एवं बुद्ध-धर्म और तत्कालीन अन्य धार्मिक साधनाओं के साथ उसके सम्बन्ध आदि के विषय में प्रभूत जानकारी मिलती है ।
वाला,
ऐतिहासिक और भौगोलिक परिस्थितियों का भी इस निकाय में प्रथम दो निकायों की तरह काफी परिचय मिलता है । जहाँ तक राजनैतिक इतिहास का सम्बन्ध है, इस निकाय में कोशलराज प्रसेनजित् का वर्णन आया है। और मगध-राज अजातशत्रु के साथ उसके युद्ध, अजातयत्रु की पराजय और बाद में प्रसेनजित् की पुत्री वज्रा ( वजिरा) का उसमे विवाह और भेंट स्वरूप काशी- प्रदेश की प्राप्ति इन घटनाओं का विवरण पहले किया ही जा चुका है। कौशाम्बी- नरेश उदयन ( उदेन ) का भी यहीं वर्णन आया है । इसके अतिरिक्त लिच्छवि, कोलिय आदि क्षत्रिय राजाओं के जहाँ जहाँ वर्णन भरे पड़े है । भौगोलिक दृष्टि से राजगृह में वेलवन, सुंसुमार गिरि में भेसकलावन, वैशाली में महावन आदि वनों नेरंजरा, गंगा, यमुना आदि नदियों, मगध में गिरिव्रज और अवन्ती में कुररघर आदि पर्वतों, न्यग्रोधाराम ( कपिलवस्तु) कुक्कुटाराम ( पाटलिपुत्र ) आदि आगमों (भिक्षु निवामों), नालक ( मगध ) शाल (कोमल) वेळवार (कोमल) आदि ग्रामों, मगध, वज्जि, कोसल आदि प्रदेशों, और देवदह, कपिलवस्तु, साकेत आदि नगरों तथा अनेक कस्बों ( निगमों) के वर्णन भरे पड़े है, जो तत्कालीन भारतीय प्रदेशों और
१२