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२. राध-संयुत्त-स्थविर राध ने भगवान् से मार, तृष्णा, अनित्यता आदि पर प्रश्न पूछे हैं। भगवान् के उत्तर बड़े मार्मिक हैं।
३. दिद्वि-संयुत्त-मिथ्या मतवादों की उत्पत्ति का कारण भगवान ने बताया है। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान में 'मैं' या 'मेरा' की भावना करना, इस प्रकार के चिन्तनों में लगे रहना जैसे कि क्या यह लोक शाश्वत है या अशाश्वत है, सान्त है या अनन्त है, क्या जीव और शरीर दो अलग अलग हैं या एक हैं, आदि, इस प्रकार के विचारों की आसक्ति ही मिथ्या मतवादों का कारण
४. ओक्कन्तिक-संयुत्त--चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा, शरीर और मन, ये सभी अनित्य, परिवर्तशील और दुःख रूप हैं, इनमें 'आत्मा' (अत्ता) की उपलब्धि नहीं होती, इस प्रकार जिसकी स्मति सदा उपस्थित रहती है वही धर्म-मार्ग में विचरण करने वाला भिक्षु है।
५. उप्पाद-संयुत्त-चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा, काय और मन का उत्पन्न होना ही जन्म, जरा, मरण, दुःख और शोक का उत्पन्न होना है-बुद्ध-उपदेश ।
६. किलेस-संयुत्त-क्लेश या चित्त-मलों का विवरण है । चक्षु और दृश्य पदार्थ में, श्रोत्र और शब्द में, घ्राण और गन्ध में, जिह्वा और रस में, काय
और स्पृष्टव्य में, मन और धर्मों (पदार्थों) में इच्छा और आसक्ति का होना ही चित्त का मल है।
७. सारिपुत्त-संयुत्त-आनन्द ने धर्मसेनापति सारिपुत्त से पूछा है कि उन्होंने अपनी इन्द्रियों को किस प्रकार शमित किया है ? धर्मसेनापति ने उत्तर-स्वरूप कहा है “एकान्त-वास (प्रविवेक) से उत्पन्न, सुख और सौमनस्य से युक्त, प्रथम ध्यान में स्थित रह कर, विषयों से दूर रह कर, 'यह मैं हूँ' 'यह मेरा है' इस प्रकार के विचारों को त्याग कर मैंने अपनी इन्द्रियों को शमित किया है।"
८. नाग-संयुत्त-नागों की चार प्रकार की उत्पत्तियाँ हैं, जैसे कि अंडे से उत्पत्ति, माँ के पेट से उत्पत्ति, स्वेद से उत्पत्ति, माता-पिता से उत्पत्ति ।
९. सुपण्ण-संयुत्त-सपर्ण नामक पक्षियों की भी चार प्रकार की उत्पत्तियाँ हैं, अंडे से उत्पत्ति, माँ के पेट से उत्पत्ति, स्वेद से उत्पत्ति, बिना माता-पिता के उत्पत्ति।
१०. गन्धब्ब-काय-संयुत्त-गन्धर्व जाति के देवताओं का वर्णन है।