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( १५४ ) का अभ्यास कर। जो द्वेष है, उससे छूट जायेगा। राहुल ! करुणा-भावना का अभ्यास कर। जो तेरी पर-पीड़ा-करण इच्छा है, वह हट जायगी। राहुल ! उपेक्षा-भावना का अभ्यास कर ! जो तेरी प्रतिहिंसा है, वह हट जायगी। राहुल अशुभ-भावना का अभ्यास कर। जो तेरा राग है, वह चला
जायगा' आदि। ६३. चूल-मालुक्य-सुत्त-लोक शाश्वत है या अशाश्वत, आदि दस प्रश्न चूल
मालुक्य पुत्र ने भगवान् से किये। भगवान ने उन्हें अव्याकत (अव्याकृतअकथनीय) करार दे दिया, क्योंकि इनका उत्तर या कथन सार्थक नहीं, ब्रह्मचर्य-उपयोगी नहीं और न वह वैराग्य, निरोध, शान्ति, उत्तम,
परम, ज्ञान एवं निर्वाण के लिये ही आवश्यक है। ६४. महा-मालुक्य-सुत्त--पाँच संयोजनों (सत्काय दृष्टि, विचिकित्सा, शील
व्रत परामर्श, काम-राग, व्यापाद) के प्रहाण का मार्ग। ६५. भद्दालि-सुत्त--भद्दालि नामक भिक्षु को आचार-मार्ग का उपदेश । ६६. लकुटिकोपम-सुत्त-स्थविर उदायी को भगवान् का धर्मोपदेश । “उदायी !
कोई कोई मूर्ख पुरुष मेरे 'यह छोड़ो' कहने पर ऐसा कहते हैं “क्या इस छोटी बात के लिये, तुच्छ बात के लिये, यह श्रमण जिद कर रहा है" और वह उसे नहीं छोड़ते। किन्तु जो भिक्षु सीखने वाले होते हैं, उन्हें यह होता है 'यह बलवान् बन्धन है, दृढ़ बन्धन है, स्थिर बन्धन है, स्थूल कलिंगर (पशुओं के गले में बाँधने का काष्ठ) है। जैसे उदायी! पोय-लता के बन्धन से बँधी लकुटिका (गौरैय्या) पक्षी वहीं वध, बन्धन या मरण की प्रतीक्षा करती है। उदायी! जो आदमी यह कहे 'चूंकि यह लकुटिका पक्षी पोयलता के बन्धन से बँधा है, वह वहीं वध, बन्धन या मरण की प्रतीक्षा कर रहा है, किन्तु उसका वह निर्बल बन्धन है, सड़ा बन्धन है, कमजोर बन्धन है। क्या उदायी। ऐसा कहते वह ठीक कह रहा है ?" "नहीं भन्ते ! वह लकुटिका पक्षी जिस पोयलता के बन्धन से बँधा है, वह उसके लिये बलवान् बन्धन है, स्थूल कलिगर (पशु के गले में बाँधने का काष्ट) है"
आदि। ६७. चातुम-सुत्त--चातुमा के भिक्षुओं को आचार-तत्त्व का उपदेश । ६८. नलक-पान-मुत्त-नलक-पान-के पलास-वन में भगवान् का भिक्षु अनि
रुद्ध से धर्म-संलाप।