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( १५२ ) (४) महायमक वग्ग ३१. चूल गोसिंग-सत्त-अनिरुद्ध, किंविल और नन्दिय की प्रव्रज्या एवं सिद्धि
प्राप्ति। ३२. महागोसिंग-सुत्त--गोसिंग शालवन किस प्रकार के भिक्षु से सुशोभित
होगा? ३३. महागोपालक-सुत्त--भिक्षु के लिये आवश्यक ग्यारह बातें। ३४. चूल गोपालक-सुत्त-अच्छे और बुरे शास्ताओं के अनुयायियों की दशा। ३५. चूल सच्चक-पुत्त--सच्चक नामक आजीवक को पञ्चस्कन्ध और अना
त्मवाद का उपदेश। ३६. महासच्चक-सत्त-भगवान् बुद्ध का अभिसम्बोधि और समाधि पर
प्रवचन । काया की साधना के ऊपर मन की साधना की स्थापना। ३७. चूलतण्हासंखय-मुत्त--तृष्णा का क्षय कैसे हो? ३८. महातण्हा संखय-सुत्त--अनात्मवाद का तृष्णा-क्षय के रूप में उपदेश ।
धर्म में भी अनासक्ति आवश्यक । ३९. महा-अस्सपुर-सुत्त-- )
भिक्षुओं के कर्तव्यों का वर्णन । ४०. चूल अस्सपुर-सुत्त-- )
(५) चूल यमक वग्ग ४१. सालेय्यक-सुत्त-कुछ प्राणी क्यों सुगति और कुछ क्यों दुर्गति प्राप्त करते
४२. वेरंजक-सुत्त--उपर्युक्त के समान विषय । ४३. महावेदल्ल-सुत्त-वेदना, संज्ञा, शील, समाधि, प्रजा, आय, उप्मा और
विज्ञान पर धर्मसेनापति सारिपुत्र का प्रवचन । ४४. चूलवेदल्ल-सुत्त--आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग, संज्ञावेदयित-निरोध, स्पर्श, वेदना
तथा अनुशयों पर भिक्षुणी धम्मदिन्ना का प्रवचन । ४५. चूल धम्मसमादान-सुत्त-धर्मानुयायियों के चार प्रकार। ४६. महाधम्मसमादान-सुत्त-उपर्युक्त के समान ही। ४७. वीमंसक-सत्त--ठीक विमर्श कैसे हो?