________________
( १२२ )
निकायों को भी एक-एक रचयिता की रचना बता कर उनके बुद्ध- वचनत्व और बौद्ध संगीतियों की मारी परम्परा को एक साथ ही फूंक मार कर उड़ाने की कोशिश की थी। किन्तु इतने सन्देहवाद तक यूरोपीय विद्वान् भी जाने को तैयार नहीं थे। अतः उनमें से बहुत ने मिनयेफकी गलत धारणा का कड़ा प्रतिवाद किया, जिसके फलस्वरूप स्वयं मिनयेफ को भी अन्त में अपना मत कुछ हद तक बदलना पड़ा। हमें इन यूरोपीय विद्वानों के मतों या उनके प्रतिवादों के संग्रह करने का यहाँ प्रलोभन नहीं है । हमें केवल यह देखना है कि अन्ततः किन कारणों के आधार पर इन्होंने पालि-त्रिपिटक की प्रामाणिकता में सन्देह किया था और वे कारण किस हद तक उस परिणाम पर पहुंचने में सही या गलत हैं। ये कारण अपने संग्रहीत रूप में इस प्रकार गिनाये जा सकते हैं (१) अशोक के काल के बाद भी त्रिपिटक में संशोधन और परिवर्तन होते रहे (२) अनः पालि-त्रिपिटक में प्राचीन और अर्वाचीन काल की परम्पराएँ मिल गई हैं (३) पालि-त्रिपिटक के वर्णनों में अनेक विरोध हैं, जैसे संयुत्त-निकाय के चुन्द-सुत्त में भगवान् वृद्ध के जीवन-काल में ही उनके प्रधान शिष्य सारिपुत्र का परिनिर्वाण होना दिखलाया गया है, किन्तु दीघ-निकाय के महापरिनिब्वाण-मुत्त में भगवान् के महापरिनिर्वाण के ठीक पहले वे उनके विषय में उद्गार करते दिखाये गये हैं। यदि पहला वर्णन ठीक है तो दूसरे अवसर पर सारिपुत्र जीवित नहीं हो सकते थे। अतः दोनों वर्णनों में स्पष्ट विरोध है । (४) एक जगह जो उपदेश बुद्ध-मुख से दिलवाया गया है, वहीं उपदेग दूसरी जगह उनके किसी शिप्य के मुख से दिलवा दिया गया है । अथवा एक जगह जिस उपदेश को किसी एक ग्राम, नगर या आदान में दिया गया दिखाया गया है, दूसरी जगह उसी उपदेश को किमी दूसरे ग्राम, नगर या आवास में दिया हुआ दिखा दिया गया है । इस प्रकार त्रिपिटक के वर्णनों में सामंजस्य का अभाव दिखाया गया है । जहाँ तक प्रथम आपत्ति का प्रश्न है वह सर्वथा निराधार है । मुख्य रूप से त्रिपिटक के स्वरूप में अशोक के काल के बाद कोई परिवर्तन-परिवर्द्धन नहीं हुआ है, इस पर हम भाषा और इतिहास आदि के साक्ष्य से इतना जोर दे चुके हैं कि इस सम्बन्ध में अधिक निरूपण करने की आवश्यकता प्रतोत नहीं होता । महेन्द्र और उनके माथी भिक्षु जिस रूप में विभिटक को लंका में ले गये उसको उभी रूप में संरक्षित रखना वहाँ के भिक्ष-संघ ने सदा अपना कर्तव्य और गौरव माना है । लंका के देश -काल का थोड़ा सा भी प्रभाव त्रिपिटक पर उपलक्षित नहीं है, यह एक विस्मयकारी वस्तु है। यदि थोडे