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आश्वसित किया “आनन्द ! शायद तुम को ऐसा हो ―― हमारे शास्ता चले गये, अब हमारे शास्ता नहीं हैं । आनन्द ! ऐसा मत समझना । मैंने जो धर्म और विनय तुम्हें उपदेश किये हैं, वे ही मेरे बाद तुम्हारे शास्ता होंगे ।" अनुकम्पक शास्ता ने अन्तिम बार भिक्षुओं को सम्बोधित किया " हन्त ! भिक्षुओ, अब तुम्हें कहता हूँ — सभी संस्कार (कृत वस्तुएँ) व्ययधर्मा ( नाशवान्) हैं, अप्रमाद के साथ ( जीवन के लक्ष्य को ) सम्पादन करो" - - यही तथागत का अन्तिम वचन था । राजगृह से लेकर कुसिनारा तक की बुद्ध यात्रा का वर्णन, जहाँ-जहाँ भगवान् रुके उनके पूर्ण विवरण के साथ, हमें यहाँ मिलता है । इस प्रकार अम्बलडिका, नालन्दा, पाटलिग्राम, कोटिग्राम, नादिका, वैशाली, भंडगाम, हत्थिगाम, और पावा आदि स्थानों का वर्णन आया है । वैशाली गणतंत्र के सात गुणों की प्रशंसा भी भगवान् ने इस सुत्त में की है ।
महासुदरसन - सुत्त ( दीघ. २/४ )
भगवान् बुद्ध अपने एक पूर्व जन्म में महासुदर्शन नामक चक्रवर्ती राजा थे । उसी समय की उनकी जीवनी का विस्तृत विवरण है । 'महासुदस्सन जातक' के कथानक से यहाँ समानता और असमानता दोनों ही हैं ।
जनवसभ - सुत्त ( दीघ. २२५ )
बिम्बिसार मरने के बाद जनवसभ नामक यक्ष के रूप में स्वर्ग लोक में उत्पन्न हुआ । उसने इस सुत्त में अपने गुरु से बुद्ध-धर्म की प्रशंसा की है । देवेन्द्र शक्र और सनत्कुमार ब्रह्मा भी इस सुत्त में बुद्ध धर्म की प्रशंसा करते दिखाये गये हैं । इस सुत्त में काशी, कोल, वज्जि, मल्ल, चेति (चेदि) कुरु, पंचाल, मच्छ ( मत्स्य) और शूरसेन जनपदों का उल्लेख है । महागोविन्दसुत्त ( दीघ. २१६ )
भगवान् बुद्ध अपने एक पूर्व जन्म में महागोविन्द नामक ब्राह्मण थे। उसी का यहाँ प्रधानतः वर्णन है । अतः इस अंश को एक जातक ही समझना चाहिये । वैसे इस सुत्त में भी पूर्व सुत्त ( जनवसभ सुत्त) की तरह देवराज इन्द्र और सनत्कुमार ब्रह्मा द्वारा बुद्ध धर्म की प्रशंसा करवाई गई है । बुद्धकालीन भारत के राजनैतिक भूगोल का वर्णन इस सुत्त की एक प्रधान विशेषता है । यहाँ काशी - कोशल और अंग-मगध आदि राज्यों का विवरण दिया गया है । अश्मक राज्य के पोतन नामक नगर का भी निर्देश है ।
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