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( १४४ ) महानिदान-सुत्त ( दीघ. २।२) __प्रतीत्यसमुत्पाद का इस सुत्त में विस्तृततम विवरण है। सुत्त के प्रारम्भ में आनन्द यह कहते दिखाई पड़ते हैं “आश्चर्य है भन्ते ! अद्भुत है भन्ते ! कितना गम्भीर है और गम्भीर सा दीखता भी है यह प्रतीत्यसमुत्पाद, किन्तु मुझे यह साफ साफ दिखाई पड़ता है"। भगवान् उन्हें.समझाते हैं “ऐसा मत कहो आनन्द ! यह प्रतीत्य समुत्पाद गम्भीर है और गम्भीर सा दिखाई भी देता है । आनन्द ! इस धर्म के जानने से ही यह प्रजा उलझे सूत सी, गाँठे पड़ी रस्सी सी, मुंज वल्वज सी, अपाय, दुर्गति और पतन को प्राप्त होती है और संसार से पार नहीं हो सकती।" इसके बाद प्रतीत्यसमुत्पाद का विस्तृत विवरण है, उसके विभिन्न १२ अंगों की व्याख्या के साथ। महापरिनिब्बाण-सुत्त ( दीघ. २३) ___महापरिनिब्बाण-सुत्त दीघ-निकाय का सम्भवत: सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण सुत्त है। यहाँ हम भगवान् के अन्तिम जीवन का बड़ा मार्मिक और सच्चा चित्र पाते हैं। इस सुत्त में प्रधानतः इतनी घटनाओं की सूचना हम पाते हैं (१) वज्जियों के विरुद्ध अजातशत्रु के अभियान का इरादा (२) बुद्ध की अन्तिम यात्रा (३) अम्बपाली गणिका का भोजन (४) भगवान् को कड़ी वीमारी (५) चुन्द का दिया अन्तिम भोजन (६) जीवन का अन्तिम समय (७) स्त्रियों के प्रति भिक्षुओं के कर्तव्य (८) चक्रवर्ती की दाह-क्रिया (९) सुभद्र की प्रत्रज्या (१०) अन्तिम उपदेश (११) भगवान् का परिनिर्वाण (१२) दाह-क्रिया (१३) स्तूप-निर्माण । इन सब घटनाओं का संक्षिप्त निदर्शन भी यहाँ नहीं किया जा सकता। केवल एक-दो प्रसंग लेख बद्ध किये जा सकते है। परिनिर्वाण से पूर्व आनन्द ने भगवान् से पूछा “भन्ते ! तथागत के शरीर को हम कैसे करेंगे?" भगवान् ने उत्तर दिया “आनन्द ! तथागत की शरीर-पूजा से तुम बेपर्वाह रहो। तुम तो आनन्द सच्चे पदार्थ के लिये ही प्रयत्न करना, सच्चे पदार्थ के लिये ही उद्योग करना। सच्चे अर्थ के लिये ही अप्रमादी, उद्योगी, आत्मसंयमी हो विहरना।" आनन्द ने पछा "भन्ते ! स्त्रियों के साथ हम कैसा बर्ताव करेंगे?" "अ-दर्शन, आनन्द !" वास्तव में बुद्ध के अन्तिम जीवन से परिचित होने के लिये और उनके सेवक शिष्य आनन्द के साथ उनकी इस समय की चारिकाओं के लिये इस सुत्त का पढ़ना अत्यन्त आवश्यक है। महा-परिनिर्वाण प्राप्त करने से पूर्व भगवान् ने भिक्षओं को