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महासमय - सुत्त ( दीघ. २७ )
इस सुत्त में बुद्ध के दर्शनार्थ देवताओं का आगमन दिखाया गया है।
सक्कपन्ह - सुत्त ( दीघ. २/९ )
शक्र (इन्द्र) द्वारा छह प्रश्नों का पूछा जाना। उसके द्वारा बुद्ध धर्म की प्रशंसा ।
महासतिपट्ठान सुत्त ( दीघ. २/९ )
इस सुत्त में चार स्मृति - प्रस्थानों यथा कायानुपश्यना, वेदनानुपश्यना, चित्तानुपश्यना और धर्मानुपश्यना का विशद विवरण किया गया है । ये चार स्मृति-प्रस्थान 'सत्वों की विशुद्धि के लिये, शोक के निवारण के लिये, दुःख और दौर्मनस्य का अतिक्रमण करने के लिये, सत्य की प्राप्ति के लिये और निर्वाण की प्राप्ति और साक्षात्कार के लिये एकायन (सर्वोत्तम, अकेले ) मार्ग हैं' ऐसा भगवान् ने यहाँ कहा है ।
पायासि राजज्ञ-सुत्त ( दीघ. २१० )
पायासि राजन्य के साथ भगवान् बुद्ध के शिष्य कुमार काश्यप के संवाद का वर्णन है । पायासि राजन्य परलोक में विश्वास नहीं करता । वह यह मानता है कि मरने के साथ जीवन उच्छिन्न हो जाता है । उसका तर्क स्पष्ट है । (१) मरे हुओं को किसी ने लौट कर आते नहीं देखा । (२) धर्मात्मा आस्तिकों को भी मरने की इच्छा नहीं होती । (३) जीव के निकल जाने पर मृत शरीर का न तो वजन ही कम होता है और न जीव को कहीं से निकलते जाते देखा जाता । भौतिकवादी पायास का कुमार काश्यप ने समाधान करने का प्रयत्न किया है । पायासि के मतानुसार " यह भी नहीं है, परलोक भी नहीं है । जीव मरने के बाद फिर नहीं पैदा होते और अच्छे बुरे कर्मों का कोई फल भी नहीं होता ।" इस मत के अनुसार ब्रह्मचर्य का अभ्यास ही व्यर्थ है । बुद्ध का मन्तव्य अनात्मवाद होते हुए भी पायास के भौतिकवाद से तो फिर भी ठीक विपरीत है ।
पार्थिक वग्ग
पाथिक-सुत ( दीघ ३ । १ )
सुनक्षत्र लिच्छविपुत्र के बौद्ध धर्म त्याग की बात फिर इस सुत्त में आई है। वह इसलिये रुष्ट होकर भिक्षु संघ को छोड़ कर चला गया था कि भगवान् ने उसे