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( १३६ ) भगवान् को भिक्षुओं के सहित राजगृह और नालन्दा के बीच के रास्ते पर जाते हुए देखते हैं। वे भिक्षुओं को निन्दा और स्तुति में समान रहने का उपदेश करते हैं। उसके बाद मूल (आरम्भिक) मज्झिम (मध्यम) और महा के रूप में शील की तीन भूमियों का विवरण है। यहीं प्रमंगवश उन अनेक प्रकार के उद्योगों, शिल्पों, व्यवसायों तथा मनुष्यों के रहन-सहन सम्बन्धी ढंगों का विवरण मिलता है जिनसे विरत रहने का भिक्षुओं को उपदेश दिया गया है । उस समय के समाज के जीवन की दशा का इससे बड़ा अच्छा पता लगता है । उस समय के मनोरंजन के साधनों को लीजिये तो नृत्य, गीत, बाजे, नाटक, लीला, ताली, ताल देना, घड़े पर तबला बजाना, गीत-मंडली, लोहे की गोली का खेल, बाँस का खेल, हस्ति-युद्ध, अश्व-युद्ध, महिष-युद्ध, वृषभ-युद्ध, बकरों का युद्ध . . . . . .लाठी का खेल, मुष्टियुद्ध, कुश्ती, मारपीट का खेल, सैन्य-प्रदर्शन आदि के विवरण मिलते हैं। मनुष्यों के आमोद-प्रमोद के साधनों को देखें तो दीर्घ आसन, पलंग, बड़े बड़े रोयें वाले आसन चित्रित आसन . . . . . . फूलदार बिछावन . . . . . . सिंह, व्याध्र आदि के चित्र वाले आसन, झालरदार आसन आदि के विवरण, दर्पण, अंजन, माला, लेप, मुख-चूर्ण (पाउडर), मुख-लेपन , हाथ के आभूषण, छड़ी, तलवार, छाता, सुन्दर जूता, टोपी, मणि, चँवर आदि के विवरण पाते हैं। अनेक प्रकार के कथाएँ जैसे राजकथा, चोरकथा, ग्राम, निगम, नगर, जनपद, स्त्री, पनघट और भूत-प्रेत आदि की कथाएँ, अनेक प्रकार के फलित ज्योतिष के विधान, अनेक प्रकार के मिथ्य! सामाजिक विश्वास और माध्यम-जीवन-निर्वाह के ढंम भी विवृत किये गये हैं। यज्ञयागादि की परम्परा कितनी विकृत हो चली थी, इसका एक संकेत अनेक प्रकार के होमों की इस सूची में ही देखिये 'अग्नि-हवन, दर्वी होम, तुष-होम, कण-होम तंडल होम, घृत-होम, तैल-होम, मुख में घी लेकर कुल्ले से होम, रुधिर होम' आदि । अनेक प्रकार की विद्याओं यथा वास्तु विद्या, क्षेत्र विद्या, मणि-लक्षण, वस्त्र-लक्षण आदि के विवरण यहाँ दिये गये है। सारांश यह कि प्राग्बुद्ध-कालीन भारत का सारा सामाजिक और धार्मिक जीवन यहाँ चित्रित हो उठा है। दार्शनिक दृष्टि से इस सत्त का यह महत्व है कि वह भगवान बुद्ध के शासन के उस स्वरूप की ओर इंगित करता है जो मध्यमा-प्रतिपदा पर आधारित है और जिसमें जीवन के सत्य का साक्षात्कार (सच्छिकिरिया) ही मुख्य है, शाश्वतवाद या अशाश्वतवाद आदि के पचड़ों में पड़ना नहीं। अतः प्राग्बुद्धकालीन भारतीय विचार की विचिकित्साओं और उनकी पृष्ठभूमि में बुद्ध-शामन का सन्देश तथा प्रसंगवग