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भारतीय सामाजिक और राजनैतिक परिस्थिति आदि का भी अच्छा दिग्दर्शन करते हैं ।
सुत्तों के आकार के सम्बन्ध में प्राय: कोई नियम दृष्टिगोचर नहीं होता । उनमें कई बहुत छोटे भी हैं और कई बहुत बड़े भी । इसी प्रकार गद्य-मय या पद्य - म होने का भी कोई निश्चित नियम नहीं है । कुछ बिलकुल गद्य में हैं और कुछ गद्य-पद्य मिश्रित भी, कुछ थोड़े से बिलकुल पद्य में भी हैं, बीच बीच में कहीं कहीं गद्य के छिटके के साथ' । प्रत्येक सुत्त अपने आप में पूर्ण है और वह बुद्ध-उपदेश या बुद्ध जीवन सम्बन्धी किसी घटना का पूरा परिचय देता है । प्रायः प्रत्येक सुत्त के प्रारम्भ में उसकी एक ऐतिहासिक भूमिका रहती है । यह भूमिका हमें बतला देती है कि जिस उपदेश का विवरण दिया जा रहा है, वह भगवान् ने कहाँ दिया । उदाहरणतः 'एक समय भगवान् श्रावस्ती में अनाथपिंडिक के आराम जेतवन में विहार करते थे' 'एक समय भगवान् राजगृह में गृध्रकूट पर्वत पर विहार करत थे जैसे वाक्य प्रायः प्रत्येक सुत्त के आदि में आते हैं । सुत्तों की अनेक छोटी-मोटी विशेषताएँ और भी देखी जा सकती हैं। उदाहरणतः भगवान् के उपदेश के बाद प्रायः ( सदा नहीं ) उपदेश सुनने वालों का इस प्रकार का कृतज्ञतापूर्ण उद्गार देवा जाता है " आश्चर्य हे गोतम ! अद्भुत हे गोतम ! जैसे औंधे को सीधा कर दे, ढँके को उघाड़ दे, भूले को रास्ता बतला दे, अन्धकार में तेल का प्रदीप रख दें, जिससे कि आँख वाले रूप को देखें, ऐसे ही आप गोतम ने अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया । यह मैं भगवान् गोतम की शरण जाता हूँ, धर्म की शरण जाता हूँ, संत्र की भी शरण जाता हूँ । आप गोतम आज से मुझे अंजलिवद्ध शरणागत उपासक स्वीकार करें " कहीं कहीं मुत्तों के अन्त में भिक्षुओं की कृतज्ञता केवल इन शब्दों से भी व्यक्त कर दी जाती है "भगवान् ने यह कहा । सन्तुष्ट हो भिक्षुओं ने भगवान् के उस कथन का अनुमोदन किया ।" मिलने-जुलने, विदा लेने, कृतज्ञता प्रकाशित करने, कुशल-मंगल पूछने आदि साधारण अवतरों पर जिस प्रकार का शिष्टाचार उस समय प्रचलित था, उसका वर्णन प्रायः समान शब्दों में सुत्तपिटक में अनेक स्थलों पर किया गया है। ऐसे स्थल बार बार आने के कारण स्वयं कंठस्थ हो जाते है । जब कोई भिक्षु भगवान् के दर्शनार्थ दूर से आता था, तो भगवान् उससे अक्सर पूछा करते थे 'कहो भिक्षु ! कुशल से तो हो ? रास्ते में कोई बड़ी हैरानी परेशानी
१. जैसे दीघ निकाय के महासमय- सुत्त, लक्खण-सुत्त, आटानाटय-सुत्त आदि