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उनके मत का पर्याप्त निराकरण कर दिया गया है, अतः उनके अ - महत्वपूर्ण कल्पना - विलास को, जिसे उन्होंने दीघनिकाय की प्रामाणिकता के विरुद्ध रक्खा था, यहाँ उद्धृत और फिर से निराकृत कर, उसे अनावश्यक महत्व देने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । दीघ - निकाय के सुत्त कलात्मक एकात्मकता के अनुसार विन्यस्त होने पर भी बुद्ध वचनों के रूप में प्रामाणिक हैं । यदि उन सब का आधारभूत विचार एक ही है, तो इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वे किसी एक ही लेखक की कृतियाँ हैं । बुद्ध के उपदेशों के रूप में भी उनमें एकात्मता तो होनी ही चाहिये । पालि दीघ - निकाय के १३४ सुत्तों में से २७ चीनी दीर्घागम में मिलते हैं। शेष सात में से ३ मध्यमागम में मिलते हैं। और ४ का पता नहीं लगा है । विषय का विन्यास यहाँ भिन्न होते हुए भी विषयवस्तु तो प्रायः समान ही है । दूसरी शताब्दी से लेकर चौथी - पाँचवीं शताब्दी तक इन सब सुत्तों का अनुवाद चीनी भाषा में हो गया था । चूँकि इसके पूर्व प्रथम शताब्दी ईसवी पूर्व के 'मिलिन्दपन्ह' में भी इनमें से अनेक का नामतः उल्लेख है, अत: इनकी प्रामाणिकता के विषय में सन्देह नहीं किया जा सकता। बाहरी आकार की दृष्टि से दीघ - निकाय के सब सुत्तों में समानता नहीं है। सीलक्खन्ध के सब सुत्त प्रायः गद्य में हैं, केवल कुछ पंक्तियाँ मात्र गाथाओं के रूप में हैं । महावग्ग और पाथेय या पाटिक वग्ग में अधिकांश सुत्त गद्य-पद्य - मिश्रित है । पाथेय या पाटिक वग्ग के महासमय- सुत्त और आटानाटिय सुत्त तो बिलकुल पद्य में ही हैं | सील-क्खन्ध के सूत्रों की यह प्रधान विशेषता है कि वे शील, समाधि और प्रज्ञा सम्बन्धी बुद्ध उपदेशों की विवरण देते हैं और उनमें बुद्धकालीन भारतीय समाज का भी पर्याप्त शील-निरूपण मिलता है, उसके सामाजिक और धार्मिक जीवन का पूराचित्र, आदि । यही उसके 'सीलक्खन्ध' नामकरण का भी कारण है | 'महावग्ग' के प्रत्येक सुत्त के नाम का आरम्भ 'महा' शब्द से होता है । विटरनित्ज़ ने इस 'महा' शब्द में क्षेपकों का रहस्य निहित माना है । उनका कहना है कि पहले इस वर्ग के उपदेश संक्षिप्त आकार के रहे होंगे और बाद में उन्हें बढाकर 'महा' कर दिया गया है । चूंकि स्वयं भगवान् बुद्ध भी एक ही विषय पर
१. पूरे विवरण के लिये देखिये दीघनिकाय ( महापंडित राहुल सांकृत्यायन का हिन्दी अनुवाद) का प्राक्कथन
२. विशेषतः 'महापरिनिब्बाण - सुत्त' में इस प्रकार के उत्तरकालीन परिवर्द्धनों