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( १०२ ) ६. विमान-वत्थु ७. पेत-वत्थु ८. थेर-गाथा ९. थेरी-गाथा १०. जातक ११. निद्देस १२. पटिसम्भिदामग्ग १३. अपदान १४. बुद्धवंस १५. चरियापिटक
पालि साहित्य अपने वर्गीकरण के लिये प्रसिद्ध है । बुद्ध-वचनों के त्रिपिटक और उसके उपर्युक्त उपविभागों के अतिरिक्त अन्य भी विभाजन किये गये है। इस प्रकार सम्पूर्ण बुद्ध-वचनों को पाँच निकायों में बाँटा गया है । यहाँ चार निकाय तो सत्त-पिटक के प्रथम चार निकायों के समान ही है, किन्तु पंचम निकाय (खुद्दकनिकाय) में स्वभावतः ही उसके पन्द्रह ग्रन्थों के अलावा विनय-पिटक और अभिधम्म पिटक के सारे ग्रन्थ भी सम्मिलित कर लिये गये हैं।' कहने की आवश्यकता नहीं कि यह वर्गीकरण प्रथम के समान स्वाभाविक नहीं है । बुद्ध-वचनों का एक और वर्गीकरण नौ अंगों के रूप में किया गया है, जिनके नाम हैं, मुत्त, गेय्य, वेय्याकरण, गाथा, उदान, इतिवृत्तक, जातक, अब्भुतधम्म और वेदल्ल । मुत्त (सूत्र) का अर्थ है सामान्यतः बुद्ध-उपदेश । दीघ-निकाय, सुत्त-निपात आदि में गद्य में रक्खे हुए भगवान् बुद्ध के उपदेश 'मुत्त' हैं। गद्य-पद्य-मिश्रित अंश गेय्य (गाने योग्य) कहलाते हैं। ‘वेय्याकरण' (व्याकरण, विवरण, विवेचन) वह व्याख्यापरक साहित्य है जो अभिधम्म पिटक तथा अन्य ऐसे ही अंगों में सन्निहित
१. देखिये आगे पांचवें अध्याय में अभिधम्म-पिटक का विवेचन । २. नौ अंगों एवं अधिकतर १२ धर्म-प्रवचनों के रूप में बुद्ध-वचनों का विभाजन महायान बौद्ध धर्म के संस्कृत-साहित्य में भी पाया जाता है, देखिये सद्धर्मपुंडरीक २।४८ (सेक्रेड बुक्स ऑव दि ईस्ट, जिल्द २१, पृष्ठ ४५); महाकरुणा पुंडरीक, पृष्ठ ३३ (भूमिका) (सेकेड बुक्स ऑव दि ईस्ट, जिल्द दस, भाग प्रथम में)