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( १०५ ) की अर्थकथाओं' गन्धवंस,२ दीपवंम,३ आदि में भी उमका उल्लेख हुआ है। इसी प्रकार बद्ध-वचनों का ८४००० धर्म-स्कन्धों में विभाजन भी वहन प्राचीन है। बुद्धघोष ने प्रथम मंगीति में ही उनका मंगायन होना दिखलाया है और अशोक द्वाग उनके मम्मान में ८८००० विहारों का बनवाया जाना (चतुगमीति विहारसहस्सानि कारापेसि) भी बौद्ध परम्पग में अति प्रसिद्ध है। ये मभी तथ्य पालित्रिपिटक के वर्गीकरण के माथ साथ उसके काल-क्रम और प्रामाणिकतापर भी काफी प्रकाग डालते है।।
ऊपर पालि-साहित्य के उद्धव और विकाम का वर्णन करते हुए यह दिखाया जा चुका है कि किस प्रकार तीन बौद्ध मंगीतियां भारत में और बाद में तीन मंगीतियां लंका में पालि त्रिपिटक के स्वरूप के सम्बन्ध में हुई थीं, जिनमें बद्ध-वचनों का मंगायन किया गया था। डा० विमलाचरण लाहा ने इन मंगीतियों के अनुसार पालि त्रिपिटक के विभिन्न ग्रन्थों के काल-क्रम को पाँच ऋमिक अवस्थाओं में विभक्त करने का प्रयत्न किया है, जो इस प्रकार हैं
प्रथम युग (४८३ ई० पू०--३८३ ई० पू०) द्वितीय युग (३८३ ई० पू०--२६५ ई० पू०)
तृतीय युग (२६५ ई० पू०--२३० ई० पू०) १. सुमंगलविलासिनी, जिल्द पहली, पृष्ठ २३; अट्ठसालिनी, पृष्ठ २६
(पालि टेक्स्ट सोसायटी के संस्करण) २. पृष्ठ ५५, ५७ (जर्नल ऑव पालि टैक्सट सोसायटी १८८६ में प्रकाशित) ३. ४।१५ (ओल्डनबर्ग का संस्करण); देखिये महावंश, पृष्ठ १२ (भदन्त
आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद) ४. समन्तपासादिका, जिल्द पहली, पृष्ठ २९; देखिये बुद्धिस्टिक स्टडीज,
पृष्ठ २२२ ५. "राजा (अशोक) न स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स से पूछा, 'बुद्ध के दिय
गय उपदेश कितने हैं ? स्थविर ने उत्तर दिया, 'धर्म के चौरासी हजार स्कन्ध (विभाग) है। यह सुनकर राजा ने कहा 'मै प्रत्येक के लिये बिहार बनवाकर उन सब की पूजा करूँगा।' तदन्तर राजा ने चौरासी हजार नगरों में ...... विहार बनवाने आरम्भ किये।" महावंश ५।७६-८० (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद)