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नहीं मिलता । ठीक तो यह है कि बौद्ध धर्म--स्थविरवादी बौद्ध धर्म--के अलावा उसमें ज्ञातव्य ही अल्प है। विभिन्न ज्ञान-शाखाओं की वह बहुमूल्य सम्पत्ति उसमें नहीं मिलती जो एक सर्वविध समृद्ध साहित्य से सम्बन्ध रखती है। फिर भी पालिसाहित्य के अन्य अनेक बड़े आकर्षण हैं । उसके साहित्य का विकास न केवल भारत में ही, अपितु लंका, बरमा और स्याम में भी हुआ है और स्वभावतः उसने इन मव देशों की भाषा और विचार-परम्परा को भी प्रभावित किया है। पालि साहित्य की रचना व द्ध-काल से लेकर आज तक निरन्तर होती चली आ रही है । अतः उमके विकास का २५०० वर्ष का इतिहास है। कालानुक्रम और प्रवृत्तियाँ, दोनों की ही दष्टि से पालि-साहित्य को दो मोटे-मोटे भागों में विभक्त किया जा सकता है, (१) पालि या पिटक साहित्य, (२) अनुपालि या अनुपिटक साहित्य । पालि या पिटक साहित्य का विकास, जैसा अपर दिखाया जा चुका है, बुद्ध-निर्वाण काल से लेकर प्रथम शताब्दी ई. पू. तक है । अनुपालि या अनुपिटक साहित्य के विकास का इतिहास प्रथम शताब्दी ई० पू० से लेकर वर्तमान काल तक चला आ रहा है। पिटक-साहित्य के ग्रन्थों का संक्षिप्त विश्लेषण और काल-क्रम
जैसा ऊपर कहा जा चुका है, पालि या पिटक साहित्य तीन भागों में विभक्त है, सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक । सुत्त-पिटक पाँच निकायों या शास्त्रों में विभाजित है, जिनके नाम हैं, दीघ-निकाय, मज्झिम-निकाय, संयुन-निकाय, अंगुत्तर-निकाय और खुद्दक-निकाय । विनय-पिटक अपने आप में एक परिपूर्ण ग्रन्थ है, किन्तु उसकी विषय-वस्तु तीन भागों में विभक्त है, सुत्तविभंग, खंधक और परिवार। मुत्त-विभंग के दो विभाग हैं, पाराजिक और पाचित्तिय। इसी प्रकार खंधक के भी दो भाग हैं, महावग्ग और चुल्लवग्ग । अमिधम्म- पिटक में मात बड़े बड़े ग्रन्थ हैं, जिनके नाम है धम्मसंगणि, विभंग, धातुकथा, पुग्गलपति , कथावत्थु, यमक और पट्ठान । सुत्त-पिटक के पाँच निकायों का कुछ अधिक विश्लेषण कर देना यहाँ आवश्यक जान पड़ता है। दीघ-निकाय में कुल ३४ सुत्त है. जो तीन वर्गों में विभाजित है । पहले मीलक्खन्ध-वग्ग में १३ सुत्त हैं, दूसरे महावग्ग में १० सुत्त है और तीसरे पाटिक-बग्ग में ११ मुत्त हैं। यह वर्गीकरण इस प्रकार दिखाया जा मकता है--