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अ०१३ / प्र०१
भगवती-आराधना / २७ इससे यह बात और भी अच्छी तरह स्पष्ट हो जाती है कि भगवती-आराधनाकार नारीशरीर को संयम का साधक नहीं मानते, अत एव वे स्त्रीमुक्तिविरोधी हैं।
आगे चलकर तो ग्रन्थकार और टीकाकार ने स्पष्ट शब्दों में पुरुषशरीर को ही परम्परया मोक्ष का कारण होने से निदान का विषय निरूपित किया है और उसके निदान को संसारवृद्धि का हेतु कहा है
जइदा उच्चत्तादिणिदाणं संसारवड्डणं होदि।
कह दीहं ण करिस्सदि संसारं परवधणिदाणं॥ १२३३॥ भ.आ.। अपराजितसूरि ने इसका खुलासा इन शब्दों में किया है-"यदि तावत् उच्चैर्गोत्रता पुरुषत्वं, स्थिरशरीरता, अदरिद्रकुलप्रसूतिबन्धुतेत्येवमादिकं मुक्तेः परम्परया कारणमपि चित्ते क्रियमाणमपि संसारवृद्धिं करोति (तर्हि ) कथं न करिष्यति दीर्घसंसारं परवधे चित्तप्रणिधानम्?" (वि.टी./गा.१२३३/पृ.६२३)।
अनुवाद-"उच्चगोत्र, पुरुषत्व, शरीर की स्थिरता, अदरिद्रकुल में जन्म तथा बन्धुबान्धव आदि परम्परया मुक्ति के कारण हैं, ऐसा चित्त में विचारकर इनका निदान करना (इच्छा करना) यदि संसार बढ़ानेवाला है, तो दूसरे के वध का चित्त में निदान करना दीर्घसंसार का कारण क्यों नहीं होगा ?"
इस प्रकार ग्रन्थकार ने सर्वत्र पुरुषशरीर को ही संयम का साधक और परम्परया मोक्ष का हेतु प्रतिपादित किया है, जिससे स्त्रीमुक्ति का विरोध होता है। यह इस बात का प्रमाण है कि आचार्य शिवार्य यापनीयमत के अनुगामी नहीं, अपितु विरोधी हैं। २.४. किसी भी स्त्री के मुक्त होने का कथन नहीं
'भगवती-आराधना' में 'किं पुण गुण सहिदाओ' इत्यादि ९८९ वी गाथा से लेकर 'तम्हा सा पल्लवणा' इत्यादि ९९६वीं गाथा तक स्त्रियों के गुणदोषों की चर्चा की गई है। पुरुषों के ब्रह्मचर्य में बाधक होने के कारण स्त्रियों की घोर निन्दा करने के बाद ग्रन्थकर्ता कहते हैं कि "सभी स्त्रियाँ ऐसी नहीं होतीं। बहुत सी स्त्रियाँ गुणवती भी होती हैं। अनेक स्त्रियों ने अपने गुणों के द्वारा लोक में यश फैलाया है। मनुष्यलोक में वे देवताओं के समान हैं और देवों से पूजनीय हैं। उनकी जितनी प्रशंसा की जाय, कम है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ गणधरों को जन्मदेनेवाली महिलाएँ अच्छे देवों और उत्तम पुरुषों के द्वारा पूजनीय होती हैं। कितनी ही महिलाएँ एकपतिव्रत और कन्याव्रत (कौमार = ब्रह्मचर्यव्रत) धारण करती हैं। कितनी ही जीवनपर्यन्त वैधव्य का तीव्र दुःख भोगती हैं। ऐसी भी अनेक शीलवती स्त्रियाँ सुनने में आती हैं, जिन्हें देवों से सम्मान प्राप्त हुआ और शील के प्रभाव से शाप देने और अनुग्रह
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