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अ०१३ / प्र०१
भगवती-आराधना / २५ २.२. वस्त्रत्याग से ही अपवादलिंगधारी की शुद्धि
अधोनिर्दिष्ट गाथा भी पूर्वोद्धृत है। इससे भी स्त्रीमुक्ति का निषेध होता है। अतः प्रत्यक्ष प्रमाण हेतु यह भी फिर से उद्धृत की जा रही है
अववादियलिंगकदो विसयासत्तिं अगूहमाणो य।
जिंदणगरहणजुत्तो सुज्झदि उवधिं परिहरंतो॥ ८६॥ भ.आ.। यह गाथा कहती है कि अपवादलिंगधारी अर्थात् वस्त्रादिपरिग्रहधारी गृहस्थ जब शक्ति को छिपाये बिना अपने सपरिग्रहत्व की निन्दा-गर्दा करता हुआ परिग्रह का त्याग करता है, तब शुद्ध होता है अर्थात् मोक्ष के योग्य बनता है।
स्त्री वस्त्रपरिग्रहात्मक अपवादलिंग का परित्याग कर नहीं सकती, अतः उसमें मोक्षयोग्य शुद्धता का आविर्भाव भी नहीं हो सकता। यह स्त्रीमुक्ति के निषेध का भगवतीआराधना में उपलब्ध तीसरा अकाट्य प्रमाण है। २.३. पुरुषशरीर ही संयम का हेतु
__शिवार्य ने निम्नलिखित गाथाओं में पुरुषशरीर को संयम का साधन बतलाया है और उसकी आकांक्षा को प्रशस्तनिदान कहा है
संजमहेदं पुरिसत्त-सत्त-बलविरियसंघडणबुद्धी।
सावअ-बंधुकुलादीणि णिदाणं होदि हु पसत्थं ॥ १२१०॥ भ.आ.। अपराजितसूरि ने इसका खुलासा इस प्रकार किया है-"संयमनिमित्तं पुरुषत्वमुत्साहः,२५ बलं शरीरगतं दाढय, वीर्यं वीर्यान्तराय-क्षयोपशमजः परिणामः, अस्थिबन्धविषया वज्रऋषभ-नाराच-संहननादिः। एतानि पुरुषत्वादीनि संयमसाधनानि मम स्युरिति चित्तप्रणिधानं प्रशस्तनिदानम्।६ श्रावकबन्धुनिदानम् अदरिद्रकुले अबन्धुकुले वा उत्पत्तिप्रार्थना प्रशस्त-निदानम्।" (वि.टी./भ.आ./गा.१२१० / पृ.६१४)।
अनुवाद-"पुरुषत्व, उत्साह, शारीरिक दृढ़ता, वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से उत्पन्न वीर्य-परिणाम, अस्थिबन्धनविशेषरूप-वज्रऋषभनाराचसंहनन आदि संयम के निमित्त हैं। ये पुरुषत्वादि संयम के साधन मुझे प्राप्त हों, चित्त में ऐसा विचार उत्पन्न होना प्रशस्तनिदान है। तथा मेरा जन्म श्रावककुल में हो, अदरिद्रकुल में हो, तथा बन्धुबान्धवरहित कुल में हो, ऐसी प्रार्थना भी प्रशस्तनिदान है।"
२५. सत्तं सत्त्वं = उत्साहः। २६. तत्थ णिदाणं तिविहं होइ पसत्थापसत्थभोगकदं।
तिविधं पि तं णिदाणं परिपंथो सिद्धिमग्गस्स॥ १२०९॥ भगवती-आराधना।
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