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विषय
पृष्ठांक ६७. पुष्पचूलिका उपांग का उत्क्षेप-निक्षेप, ६५३-६५४
५. केवलज्ञान ६८. वृष्णिदशा उपांग का उत्क्षेप-निक्षेप,
६५४
९९. केवलज्ञान का विस्तार से प्ररूपण, ६७७-६७९ ६९. निरयावलिकादि उपांगों का उपसंहार,
१००. केवली के ज्ञान का विशिष्टत्व,
६७९ ७०. चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि तीन प्रज्ञप्तियाँ कालिक, ६५४-६५५
१०१. छद्मस्थ और केवली के जानने-देखने में ७१. विमानप्रविभक्ति वर्गों के उद्देशनकाल, ६५५
अन्तर,
६७९-६८० ७२. प्रकीर्णकों की संख्या,
६५५ १०२. केवली एवं सिद्धों में जानने-देखने के सामर्थ्य ७३. दस दशाओं के अध्ययन,
६५५-६५६ का प्ररूपण,
६८०-६८१ ७४. श्रुत का चार प्रकार से निक्षेप,
६५७
१०३. केवली और सिद्धों में भाषा आदि का ७५. श्रुत का नाम और स्थापना निक्षेप,
६५७ प्ररूपण,
६८१-६८२ ७६. द्रव्यश्रुत का निक्षेप, ६५७-६५९ १०४. छद्मस्थ से केवलज्ञानी की विशेषता,
६८२ ७७. भावश्रुत का निक्षेप,
६५९-६६०
१०५. छद्मस्थ और केवली का परिचय, ६८२-६८३ ७८. श्रुत के पर्यायवाची शब्द,
६६० १०६. वैमानिक देवों द्वारा केवली के मन-वचन७९. श्रुतपरिमाणसंख्या,
६६०-६६१ योगों का ज्ञान,
६८३-६८४ ८०. ब्राह्मी लिपि के मातृकाक्षरों की संख्या,
१०७. केवली के साथ अणुत्तर देवों का संलाप, ६८४-६८५ ८१. श्रुतज्ञान की पढ़ने की विधि,
६६१ १०८. केवली का वर्तमान भविष्यकालीन अवगाहन ८२. आगम शास्त्र ग्राहक के आठ गुण, ६६१-६६२
सामर्थ्य,
६८५ ८३. पापश्रुत के नाम, ६६२-६६४ १०९. केवली के दश अनुत्तर,
६८५ ८४. पापश्रुतों का प्ररूपण,
६६४ ८५. स्वप्न दर्शन का प्ररूपण,
६६४-६६६
ज्ञान अध्ययन परिशिष्ट ८६. प्रत्यक्ष ज्ञान के भेद,
६६६-६६७ ११०. पाँच ज्ञानों की उत्पत्ति के हेतुओं का प्ररूपण, ६८५-६८६ ३. अवधिज्ञान
१११. पाँच ज्ञानों की अनुत्पत्ति के हेतुओं का प्ररूपण, ६८६
११२. बोधि, संयम एवं ज्ञानों की उत्पत्ति के हेतु का ८७. अवधिज्ञान का प्ररूपण,
६६७ प्ररूपण,
६८७ १. आनुगामिक अवधिज्ञान का प्ररूपण, ६६७-६६८
११३. पाँच प्रकार के ज्ञानों का उपसंहार,
६८७ २. अनानुगामिक अवधिज्ञान का प्ररूपण, ६६८-६६९ ३. वर्द्धमान अवधिज्ञान का प्ररूपण,
६६९
अज्ञान ४. होयमान अवधिज्ञान का प्ररूपण,
११४. अज्ञानों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण, ५. प्रतिपाति अवधिज्ञान का प्ररूपण, ६६९-६७० ११५. सात प्रकार के विभंग ज्ञानों का प्ररूपण, ६८८-६९० ६. अप्रतिपाति अवधिज्ञान का प्ररूपण,
११६. अज्ञान-निवृत्ति भेद और चौबीसदंडकों में ८८. अवधिज्ञान का क्षेत्र,
६७०-६७१ प्ररूपण,
६९० ८९. अवधिज्ञान के स्वामी का कथन,
६७१ ११७. अश्रुत्वा पाँच ज्ञानों के उपार्जन-अनुपार्जन ९०. अवधिज्ञान के भेदों का उपसंहार,
६७१ का प्ररूपण,
६९०-६९५ ९१. अवधिज्ञान के आभ्यन्तर-बाह्यद्वार का प्ररूपण, ६७१
११८. श्रुत्वा पाँच ज्ञानों के उपार्जन-अनुपार्जन का ९२. चौबीसदण्डकों में देशावधि-सर्वावधि का
प्ररूपण,
६९५-६९७ प्ररूपण,
६७१-६७२
११९. जीव-चौबीसदंडकों और सिद्धों में ज्ञानित्व९३. चौबीसदंडकों में अवधिज्ञान द्वारा जानने देखने
अज्ञानित्व का प्ररूपण,
६९७-७००
१२०. गति आदि बीस द्वारों की विवक्षा से ज्ञानत्वके क्षेत्र का प्ररूपण,
६७२-६७४ अज्ञानत्व का प्ररूपण,
७००-७०१ ९४. चौबीसदंडकों में अवधिज्ञान के संस्थान का
१.गति द्वार,
७०१ प्ररूपण,
- ६७४ २. इन्द्रिय द्वार,
७०१ ९५. चौबीसदंडकों में अवधिज्ञान के आनुगामित्वादि
३. काय द्वार, का प्ररूपण,
६७४-६७५ ४. सूक्ष्म द्वार,
७०१-७०२ ४. मनःपर्यवज्ञान
५. पर्याप्त-अपर्याप्त द्वार,
७०२-७०३ ६. भवस्थ द्वार,
७०३ ९६. मनःपर्यवज्ञान का लक्षण,
६७५
७. भवसिद्धिक द्वार, ९७. मनःपर्यवज्ञान के भेद,
६७५ ८.संज्ञी द्वार,
७०३ ९८. मनःपर्यवज्ञान के स्वामित्व का प्ररूपण, ६७५-६७७
९. लब्धिद्वार,
७०३-७०८
६८७
६७०
७०१
७०३
(८८)