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दं. २०-२१. सम्मुच्छिपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सम्मुच्छिम-मणुस्साणं य एवं चेव।
द्रव्यानुयोग-(१) दं. २०-२१. सम्मूर्छिम पंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों एवं सम्मूर्छिम मनुष्यों की योनि के विषय में भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिए। गर्भजपंचेंद्रिय तिर्यञ्चयोनिकों तथा गर्भज मनुष्यों की योनि सचित्त और अचित्त नहीं है किन्तु मिश्र योनि है।
द. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों की योनि के लिए असुरकुमारों के समान समझना चाहिए।
गमवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं, गमवक्कंतियमणुस्साण य नो सचित्ता, नो अचित्ता, मीसिया जोणी। द.२२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं।
-पण्ण. प.९, सु.७५४-७६२ ४. सचित्ताइजोणियाणं अप्पबहुत्तंप. एएसि णं भंते ! जीवाणं सचित्तजोणिणं, अचित्तजोणिणं,
मीसजोणिणं, अजोणिण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा
जाच विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १.सव्वत्थोवा जीवा मीसजोणिया,
२.अचित्तजोणिया असंखेज्जगुणा, ३.अजोणिया अणंतगुणा, ४.सचित्तजोणिया अणंतगुणा।
-पण्ण.प.९, सु.७६३ ५. संवुडाइजोणीभेया चउवीदंडएसुयपरूवणं
प. कइविहाणं भंते ! जोणी पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा
१. संवुडाजोणी, २. वियडाजोणी,
३. संवुडवियडाजोणी२। प. द.१.नेरइया णं भंते ! किं संवुडाजोणी, वियडाजोणी,
संवुडवियडाजोणी? उ. गोयमा ! संवुडाजोणी, नो वियडाजोणी, नो
संवुडवियडाजोणी। प. दं.२-१६.एवं जाव वणस्सइकाइयाणं,
४. सचित्तादि योनिकों का अल्प बहुत्वप्र. भन्ते ! इन सचित्तयोनिक जीवों, अचित्तयोनिक जीवों
मिश्रयोनिक जीवों तथा अयोनिकों में से कौन किनसे अल्प
यावत् विशेषाधिक है? उ. गौतम ! १. मिश्रयोनिक जीव सबसे अल्प हैं,
२. (उनसे) अचित्तयोनिक जीव असंख्यातगुणे हैं, ३.(उनसे) अयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं, ४.(उनसे) सचित्तयोनिक जीव अनन्तगुणे हैं।
५. संवृत्तादि योनि भेद और चौबीस दंडकों में प्ररूपण
प्र. भन्ते ! कितने प्रकार की योनियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! योनियां तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा
१. संवृत योनि, . २. विवृत योनि,
३. संवृत-विवृत योनि।। प्र. दं.१. भन्ते ! नैरयिकों की क्या संवृत योनि है, विवृत योनि
है या संवृत विवृत योनि है? उ. गौतम ! नैरयिकों की योनि संवृत है, किन्तु विवृत और
संवृत-विवृत नहीं है। प्र. दं.२-१६. इसी प्रकार वनस्पतिकायिकों पर्यन्त की योनियां
जाननी चाहिए। प्र. दं. १७. भन्ते ! द्वीन्द्रिय जीवों की योनि संवृत है, विवृत है
या संवृत-विवृत है? उ. गौतम ! उनकी योनि संवृत और संवृत-विवृत नहीं है, किन्तु
विवृत है, दं. १८-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यंत जानना चाहिए। दं.२० क. सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की और द.२१ क. सम्मूर्छिम मनुष्यों की योनि द्वीद्रियों जैसी है।
प. द.१७.बेइंदियाणं भंते ! किं संवडाजोणी, वियडाजोणी,
संवुडवियडाजोणी? उ. गोयमा ! नो संवुडाजोणी, वियडाजोणी, नो
संवुडवियडाजोणी। दं.१८-१९.एवं जाव चउरिंदियाणं।
दं.२० क.सम्मुच्छिम-पंचेदिय-तिरिक्खजोणियाणं, दं.२१ क.सम्मुच्छिम-मणुस्साण य जहा बेइंदियाणं,
१(क) ठाणं,अ.३, उ.१,सु.१४८ (ख) अचित्ता खलु जोणी नेरइयाणं तहेव देवाणं।
मीसा य गब्भवसही, तिविहा जोणीय सेसाणं ।। अचित्तैव योनि रयिकाणां तथैव देवानाम्। मिश्रा व गर्भयसतीनाम् त्रिविधा योनिश्च शेषाणाम्॥ -इति अभयदेवीयस्थानांगवृत्तिगतोद्धरणम्।
२(क) ठाणं.अ.३,उ.१,सु.१४८ (ख) संवुड, वियडा, संवुडवियडाइति स्थानाङ्ग सूत्रे। (ग) एगिदिय नेरइया संवुडजोणी हवंति देवाय।
विगलिंदियाण वियडा, संवुडवियडाय गमम्मि। एकेन्द्रिय नैरयिकाःसंवतयोनयो भवन्ति देवाश्च। विकलेन्द्रियाणां विवृता, संवृतविवृता च गर्थे। -इतिअभयदेवीय स्थानांगसूत्रवृत्तिगतोद्धरणम्॥