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ज्ञान अध्ययन
सब्भूय-दुगुणप्पभाव-नरगण-मइविम्हयकारीणं
-६२९ )
अईसयमईयकालसमय - दम - सम - तित्थकरूत्तमस्स ठिइकरणकारणाणं
दुरहिगमदुरवगाहस्स, सव्वसव्वन्नुसम्मयस्स,
अबुहजणविबोहणकरस्स, पच्चक्खयपच्चयकराणं पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया आधविज्जति।
पण्हावागरणेसु णं परित्ता वायणा जाव संखेज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगठ्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पण्णत्ता। संखेज्जा अक्खरा जाव उवदंसिज्जति।
अपने सद्भूत द्विगुण प्रभावक उत्तरों के द्वारा जन समुदाय को विस्मित करती है, अतीत काल के समय में दम और शम के धारक, विशिष्ट अतिशय सम्पन्न तीर्थकर हुए हैं इस प्रकार संशयशील मनुष्यों के स्थिरीकरण करने वाले, समझने और अवगाहन करने में कठिन सभी सर्वज्ञों के द्वारा सम्मत, अबुधजनों को प्रबोध करने वाले ऐसेप्रत्यक्ष प्रतीति-कारक प्रश्नों का और विविध गुण और महान् अर्थ वाले जिनवर-प्रणीत उत्तरों का इस अंग में कथन किया गया है। प्रश्नव्याकरण अंग में परिमित वाचनाएं हैं यावत् संख्यात संग्रहणियां हैं। प्रश्नव्याकरण अंगरूप में दशवा अंग है, इसमें एक श्रुतस्कन्ध है, पैंतालीस उद्देशन-काल हैं, पैंतालीस समुद्देशन-काल हैं, पद-गणना की अपेक्षा संख्यात लाख पद कहे गए हैं। इसमें संख्यात अक्षर हैं यावत् उदाहरण देकर समझाया मया है। इसका सम्यक् अध्ययन करने वाला तदात्मरूपज्ञाता एवं विज्ञाता हो जाता है। इस प्रकार इस अंग में चरण-करण की विशिष्ट प्ररूपणा की है यावत् उपदर्शन किया है।
यह प्रश्नव्याकरण का वर्णन है। (क) प्रश्नव्याकरण सूत्र का उपोद्घातप्र. भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान
प्राप्त द्वारा नौवें अंग अनुत्तरोपपातिक दशा का यह अर्थ कहा है तोभन्ते ! दसवें अंग प्रश्नव्याकरण का क्या अर्थ कहा है?
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया,
एवं चरण-करण परूवणया आघविज्जति जाव उवदसिज्जति। से तं पण्हावागरणाई।
-सम.सु.१४५ (क) पण्हावागरणस्स उक्खेवोप. जई णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं अयमठे पण्णत्तेदसमस्स णं भन्ते ! अंगस्स पण्हावागरणाणं के अट्ठे
पण्णत्ते? उ. जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव
सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता,तं जहा१. आसवदारा य, २. संवरदारा य।
उ. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर यावत् सिद्धगति नामक स्थान
प्राप्त द्वारा दसवें अंग प्रश्नव्याकरण के दो श्रुतस्कन्ध कहे गए हैं, यथा१. आश्रव द्वार, २. संवर द्वार।
से किं तं पण्हावागरणाई ? पण्हावागरणेसुणं अछुत्तरं पसिणसयं, अठुत्तरं अपसिणसयं, अठुत्तरं पसिणापसिणसय, अण्णे वि विविहा दिव्या विज्जाइसया नाग-सुवण्णेहिं सद्धिं दिव्या संवाया आघविति। पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा जाव संखिज्जाओ संगहणीओ। से णं अंगट्ठयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला, संखेज्जाई पयसहस्साई पदग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा जाव उवदसिज्जति। से एवं आया, एवं णाया,एवं विण्णाया, एवं चरण करण परूवणया आधविज्जइ। से तं पण्हावागरणाई।