Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 890
________________ ज्ञान अध्ययन सेत आगमओ भाषाए। प से किं तं नो आगमओ भावाए ? उ. नो आगमओ भावाए-दुविहे पण्णत्ते, तं जहा२. अपसत्थे य । १. पसत्ये य प से किं तं पसत्थे ? उ. पसत्थे - तिविहे पण्णत्ते, तं जहा १. णाणाए, ३. चरिताए। सेतं सत्ये । प से किं तं अपसत्ये ? उ. अपसत्थे चउव्विहे पण्णत्तें, तं जहा २. दंसणाए १. कोहाए, २. माणाए, ४. लोभाए । ३. मायाए, से तं अपसत्थे। से तं णो आगमओ भावाए। सेतं भावाए। सेतं आए। १८८. झवणा-णिक्खेवो प. (४) से किं तं झवणा ? उ. झवणा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा प से किं तं दव्वज्झवणा ? - अणु. सु. ५७५-५७९ १. नामज्झवणा, ३. दव्वज्झवणा, णाम ठवणाओ पुव्वभणियाओ। २. ठवणज्झवणा, ४. भावज्झवणा । उ. दव्वज्झवणा-दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. आगमओ य प से किं तं आगमओ दव्यज्झयणा ? २. नो आगमओय उ. जस्स णं झवणेति पदं सिक्खियं ठितं जितं मितं परिजियं, सेसं जहा दव्यापणे तहा भाणिपब्बं। सेतं आगमओ दव्वज्झवणा । प से किं तं नो आगमओ दब्बझवणा ? उ. नो आगमओ दव्वज्झवणा-तिविहा पण्णत्ता, तं जहा१. जाणयसरी रदव्वज्झवणा, २. भवियसरीरदव्वज्झवणा, ३. जाणयसरीरभवियसरीहरिता व्यज्वणा । प. से किं तं जाणयसरीरदव्वज्झवणा ? - उ. जाणयसरीरदव्वज्झवणा झवणापयत्थाहिकार जाणयस्स जं सरीरयं ववगय चुप-चइय- चत्तदेह. से जहा दव्वज्झयणे। सेतं जाणवसरीर दव्यायणा । प से किं तं भवियसरीरदव्यज्झवणा ? यह आगमभाव-आय है। प्र. नो आगमभाव-आय क्या है ? उ. नो आगमभाव- आय दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रशस्त, प्र. प्रशस्त नो आगमभाव-आय क्या है ? २. अप्रशस्त । १. ज्ञान-आय, ३. चारित्र - आय। यह प्रशस्त-भाव-आय है। उ. प्रशस्त नो आगमभाव- आय तीन प्रकार की कही गई है, यथा २. दर्शन-आय, ७८३ प्र. अप्रशस्त नो आगमभाव-आय क्या है ? उ. अप्रशस्त नो आगमभाव-आय चार प्रकार की कही गई है, यथा १. क्रोध आय २. मान-आय, ४. लोभ-आय। ३. माया-आय, यह अप्रशस्तभाव - आय है। यह नो आगमभाव-आय है। यह भाव आय है। यह आय है। १८८. “ क्षपणा" का निक्षेप प्र. (४) क्षपणा क्या है ? उ. क्षपणा चार प्रकार की कही गई है, यथा १. नामक्षपणा, २. स्थापनाक्षपणा, ३. द्रव्यक्षपणा, ४. भावक्षपणा । नाम और स्थापना क्षपणा पूर्ववत् है। प्र. द्रव्यक्षपणा क्या है ? उ. द्रव्यक्षपणा दो प्रकार की कही गई है, यथा १. आगम से, २. नो आगम से । प्र. आगमद्रव्यक्षपणा क्या है? उ. जिसने क्षपणा यह पद सीख लिया है, स्थिर, जित, मित और परिजित कर लिया है इत्यादि द्रव्याध्ययन के समान कहना चाहिए। यह आगम से द्रव्य क्षपणा है। प्र. नो आगमद्रव्य क्षपणा क्या है ? उ. नो आगमद्रव्य क्षपणा तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. ज्ञायकशरीर द्रव्यक्षपणा, २. भव्यशरीर द्रव्यक्षपणा, ३. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा । प्र. ज्ञायकशरीर द्रव्यक्षपणा क्या है ? उ. ज्ञायकशरीर द्रव्यक्षपणाक्षपणा पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत, च्युत, च्यवित, त्यक्त शरीर इत्यादि द्रव्याध्ययन के समान है। यह ज्ञायकशरीरद्रव्यक्षपणा है। प्र. भव्यशरीरद्रव्यक्षपणा क्या है ?

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