________________
द्रव्यानुयोग-(१)
पृ. ५५, सू. ११९-पृथ्वियों के चरमान्त में जीव-अजीव व देश-प्रदेश।
पृ. ५७, सू. १२३ (१) अधोलोक में अनन्त जीव द्रव्य, अजीव द्रव्य, जीवाजीव द्रव्य।
पृ. ५७, सू. १२४-अधोलोक के आकाश प्रदेश में जीव-अजीव।
पृ. ६५५, सू. ३-ऊर्ध्वलोक क्षेत्र में जीव और अजीव तथा उनके देश-प्रदेश।
पृ. ६५६, सू. ४-ऊर्ध्वलोक क्षेत्र के एक आकाश प्रदेश में जीव-अजीव और उनके देश-प्रदेश। द्रव्यानुयोग
पृ. २-३, सू. २-जीवाजीव के ज्ञान का माहात्म्य। पृ. ३, सू. ३-जीवाजीव के अस्तित्व की प्रज्ञा का प्ररूपण।
७. जीव अध्ययन (पृ. १०१-२६१) धर्मकथानुयोग
भाग १, खण्ड १, पृ. ३८, सू. ११९-भ. ऋषभ द्वारा छह जीवनिकाय का उपदेश।
भाग १, खण्ड १, पृ. १५५, सू. ३९३-छह छजीवनिकाय। भाग १, खण्ड २, पृ. २८, सू.६५-पाँच प्रकार की पर्याप्ति।
भाग १, खण्ड २, पृ. ९७, सू. २१७-चन्द्रदेव के पाँच प्रकार की पर्याप्ति।
भाग १, खण्ड २, पृ. २६७, सू. ४९८-लोक, जीव, सिद्ध, मरण आदि के सम्बन्ध में पिंगल निर्ग्रन्थ के प्रश्न।
पृ. २७२, सू. ५०८-चतुर्विध जीव की प्ररूपणा।
भाग १, खण्ड २, पृ. २७२, सू. ५०९-चार प्रकार की सिद्धि की प्ररूपणा।
भाग १,खण्ड २,पृ. २७३, सू.५०९-चार प्रकार के सिद्ध का प्ररूपण।
भाग १, खण्ड २, पृ. ३२४, सू. ५७७-सभूत प्राणी, त्रस एकार्थक।
भाग १, खण्ड २, पृ. ३३१, सू. ५८५-प्राणी व त्रस का कथन।
भाग २, खण्ड ३, पृ. १०४, सू. २३९-श्री देवी की पाँच पर्याप्तियाँ।
भाग २, खण्ड ४, पृ. ९२, सू. ४५-जीव व शरीर की भिन्नता।
भाग २, खण्ड ४, पृ. ९५, सू. ४५-जीव के नरक से मनुष्य लोक में आने में असमर्थता।
भाग २, खण्ड ४, पृ. ९७, सू. ४५-जीव के देव लोक से मनुष्य लोक में आने के चार कारण।
भाग २, खण्ड ४, पृ. ९८, सू. ४५ (३-४)-जीव की अप्रतिहत गति।
भाग २, खण्ड ४, पृ. १०३, सू. ५१-जीव का अगुरुलघुत्व।
भाग २, खण्ड ४, पृ. १०९, सू. ५५-जीव प्रदेशों का शरीर प्रमाण अवगाहन।
भाग २, खण्ड ४, पृ. १०८, सू. ५४-निर्दिष्ट जीव का अदर्शनीयत्व।
भाग २, खण्ड ५, पृ. २४, सू. ३८-जीव का शाश्वतत्वअशाश्वतत्व। गणितानुयोग
पृ. १४, सू. ३० (५) त्रस-स्थावर प्राणियों का विच्छेद नहीं होना।
पृ. ३६८, सू. ७३१-लवण समुद्र और धातकी खण्ड के जीवों की उत्पत्ति। __पृ. ३६८, सू. ७३२-धातकी खण्ड और कालोद समुद्र के जीवों की उत्पत्ति।
पृ. ३७१, सू. ७४२-कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीपार्ध के जीवों की उत्पत्ति।
पृ. ६७५, सू. ४०-कृष्णराजियों में जीव उत्पत्ति।
पृ. ६७९, सू. ५४–तमस्काय में जीव उत्पत्ति। चरणानुयोग
भाग १, पृ. ४४-४५, सू. ५९-चारों गतियों के जीवों में उत्पत्ति आदि का काल।
भाग १, पृ. १४९, सू. २४६-प्रथम तज्जीवी-ततारीरी। भाग १, पृ. १५३, सू. २४७-द्वितीय पंच महाभूत जीवी। भाग १, पृ. १५५, सू. २४८-तृतीय ईश्वरकारणिक जीवी। भाग १, पृ. १५७, सू. २४९-चतुर्थ नियतवादी जीवी। भाग १, पृ. १६०, सू. २५२-एकात्मवाद। भाग १, पृ. १६१, सू. २५३-आत्मवाद। भाग १, पृ. १६१, सू. २५६-पंचस्कंधवाद। भाग १, पृ. २०७, सू.३०५-जीव के कंपन आदि का कथन। भाग १, पृ. २१२, सू. ३०७-पाप स्थानों से जीवों की गुरुता।
भाग १, पृ. २१२, सू. ३०८-विरति स्थानों से जीवों की लघुता।
भाग १, पृ. २२५-२४४, सू. ३२५-३४५-छह जीवनिकाय का वर्णन।
भाग १, पृ. २८३-२८५, सू. ४०५-४१३-आठ सूक्ष्म जीव। भाग २, पृ. ४७, सू. ६५-जीव धर्म स्थित है या अधर्म स्थित है।
भाग २. द्रव्यानुयोग
पृ. २१, सू. १९-जीव द्रव्य के भेद। पृ. ३८, सू. ४-जीव पर्याय का परिमाण। पृ. ९०, सू.१-जीव परिणाम। पृ. ११, सू.६-जीव का लक्षण। पृ. २३, सू. २५-जीव प्रदेश के असंखेयत्व का प्ररूपण। पृ. २५, सू. २८-जीव आदि के अल्पबहुत्व का प्ररूपण। पृ. २७, सू. २-जीवास्तिकाय की प्रवृत्ति। पृ. २८, सू. ३-जीवास्तिकाय के पर्यायवाची। पृ. ३२, सू. १०-जीवास्तिकाय के मध्य प्रदेशों का अवगाहन।
पृ. ५२४, सू. १५-जीवों द्वारा स्थित भाषा द्रव्यों के ग्रहण का प्ररूपण।