Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 909
________________ 14. द्रव्यानुयोग-(१) भाग २, पृ.७८-८२, सू. २१६-चार प्रकार के आवश्यक। पृ. ३८१, सू. २६-ज्ञानी आदि आहारक या अनाहारक। भाग २, पृ. १७६, सू. ३५६-श्रुतज्ञान की अपेक्षा। पृ. ४५३, सू.१६-चौदह पूर्वी के हजार रूप करने का सामर्थ्य। भाग २, पृ.१९०, सू. ३७२-आठ प्रकार के महानिमित्त। पृ. ५६८, सू. ८-केवलियों में एक समय में दो उपयोग का भाग २, पृ. २०६, सू.४३०-श्रुत सम्पदा के ४ प्रकार। निषेध। भाग २, पृ. २०७, सू. ४३३-वाचना सम्पदा के ४ प्रकार। पृ.८००, सू.६-पुलाक आदि के ज्ञान।। भाग २, पृ. २०७, सू. ४३४-मति सम्पदा के ४ प्रकार। पृ. ८२२, सू. ७-सामायिक संयत आदि में ज्ञान। भाग २, पृ. २३८, सू. ४९८-श्रुत ग्रहण के लिए अन्य गण में पृ. ८७६, सू. ३६-लेश्या के अनुसार जीवों में ज्ञान के भेद। जाने का विधि निषेध। पृ. ८७६, सू. ३७-लेश्या के अनुसार नैरयिकों में अवधिज्ञान भाग २, पृ. २४१, सू. ५०१-आचार्य आदि को वाचना देने के। क्षेत्र। लिए अन्य गण में जाने का विधि-निषेध। पृ. १२६६, सू. ११-एकेन्द्रिय जीवों में ज्ञानी-अज्ञानी। भाग २, पृ. ३४२, सू. ६८३-सूत्र सीखने के हेतु। पृ. १२६८, सू. १२-विकलेन्द्रिय जीवों में ज्ञानी-अज्ञानी। भाग २, पृ.३४२, सू. ६८४-स्वाध्याय का फल। भाग २, पृ. ३४३, सू. ६८७-सूत्र वाचना के ५ हेतु। पृ. १२६९, सू. १३-पंचेन्द्रिय जीवों में ज्ञानी-अज्ञानी। भाग २, पृ. ३४३, सू. ६८८-सूत्र वाचना के योग्य। पृ. १२८१, सू. ३६-उत्पल पत्र के जीव ज्ञानी या अज्ञानी। भाग २, पृ. ३४४, सू. ६८९-सूत्र वाचना के अयोग्य। पृ. ११०६, सू. ३६-ज्ञानी-अज्ञानी द्वारा पाप कर्म भंग। भाग २, पृ. ३४४, सू.६९०-सूत्र वाचना का फल। पृ.१४७५, सू.३१-रत्नप्रभा के नरकावासों में अवधिज्ञानी की भाग २, पृ. ४०४, सू.८११-ज्ञानादि से युक्त मुनि का पराक्रम। उत्पत्ति और उद्वर्तन। पृ. ४८५, सू. १९-इन्द्रिय अवग्रह आदि के भेद। द्रव्यानुयोग पृ. १४७५, सू. ३१-रत्नप्रभा के नरकावासों में श्रुतज्ञानी की पृ. २७, सू. २-जीव के आभिनिबोधिक ज्ञान आदि की अनन्त उत्पत्ति और उद्वर्तन। पर्यायें। पृ. १४७५, सू. ३१-मति अज्ञानी की उत्पत्ति और उद्वर्तन। पृ. ४१-४५, सू. ५-ज्ञान-अज्ञान की अपेक्षा पर्यायों का परिमाण। पृ. १४७५, सू. ३१-श्रुत अज्ञानी की उत्पत्ति और उद्वर्तन। पृ. ४९-६५, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट पृ. १४७५, सू. ३१-विभंगज्ञानी की उत्पत्ति और उद्वर्तन। आभिनिबोधिक ज्ञान वाले नैरयिक तिर्यञ्च, मनुष्य और देव के पृ. १५६७-१५६८, सू. ९-ज्ञान पर्याय की अपेक्षा कृतयुग्मादि पर्यायों के परिमाण। का प्ररूपण। पृ. ५३, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट मति अज्ञानी पृ. १५६८, सू. १०-अज्ञान पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्मादि का पृथ्वीकायिक के पर्यायों के परिमाण। प्ररूपण। पृ. ५९, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य अनुत्कृष्ट अवधिज्ञान पृ. १५७७, सू. २२-कृतयुग्म एकेन्द्रिय में दो अज्ञान। वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्यायों के परिमाण। पृ. ११३८, सू. ७९-ज्ञानी-अज्ञानी की अपेक्षा आठ कर्मों का पृ. ६३, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवधिज्ञान बंध। वाले मनुष्य के पर्यायों का परिमाण। पृ. ११७२, सू. १२८-आभिनिबोधिक आदि ज्ञानी व अज्ञानी पृ. ६४, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट मनःपर्यव क्रियावादी आदि जीवों द्वारा आयुबंध का प्ररूपण। ज्ञान वाले मनुष्य के पर्यायों का परिमाण। पृ. १६७५, सू. १-ज्ञान की अपेक्षा आत्म-स्वरूप। पृ. ६४, सू. ६-जघन्य-उत्कृष्ट-अजघन्य-अनुत्कृष्ट केवलज्ञानी पृ. १६७६, सू. ५-औत्पत्तिकी आदि बुद्धि में, अवग्रह आदि में मनुष्य के पर्यायों का परिमाण। आभिनिबोधिक आदि पाँच ज्ञानों में जीव व जीवात्मा का वर्णन। पृ. २-३, सू. २-जीवाजीव के ज्ञान का माहात्म्य। पृ. १६७६, सू. ५-मति-अज्ञान आदि में जीव व जीवात्मा। पृ. ९१, सू. २-ज्ञान परिणाम के पाँच प्रकार। पृ. १७१३, सू. ३-ज्ञानी-अज्ञानी आभिनिबोधिक आदि ज्ञानी पृ.९१, सू. २-अज्ञान परिणाम के तीन प्रकार। चरम या अचरम। पृ. ११६, सू. २१-ज्ञानी-अज्ञानी जीव। पृ. १७७५, सू. १३-औत्पत्तिकी आदि बुद्धियों में वर्णादि का पृ. ११८, सू. २१-आभिनिबोधिक ज्ञानी आदि ६ प्रकार के प्ररूपण। जीव। पृ. १७७५, सू. १३-अवग्रह आदि में वर्णादि। पृ.११९,सू.२१-आभिनिबोधिक ज्ञानी आदि ८ प्रकार के जीव। पृ. १७७७, सू. २१-ज्ञान-अज्ञान आदि में वर्णादि का अभाव। पृ. १८६, सू. ९१-काला देश की अपेक्षा ज्ञान। पृ. १६०४, सू. ३-नैरयिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पृ. २०४, सू. १00-क्रोधोपयुक्तादि भंगों में ज्ञान। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव अज्ञानी। पृ.२६६,सू.२-चौवीस दंडकों में ज्ञान द्वार द्वारा प्रथमाप्रथमत्व।

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