Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 891
________________ ७८४ उ. भविय सरीरदव्यज्झवणा जे जीवे जोणीजम्मणणिक्खते इमेणं चेव आयत्तएणं सरीर समुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं झवणे त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, ण ताव सिक्खइ । प. को दिट्ठतो ? उ. जहा अयं धयकुंभे भविस्सइ, अयं महुकुंभे भविस्सइ । सेतं भवियसरीरदव्यझवणा । प. से किं तं जाणयसरीर भवियसरीर वइरित्ता दव्वज्झवणा ? उ. जहा जाणयसरीरभवियसरीरयइरिले दबाए तहा भाणियया । सेतं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्यझवणा । से तं नो आगमंओ दव्यज्झवणा । से तं दव्यज्झवणा । प. से किं तं भावज्झवणा ? उ. भावज्झवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा२. नो आगमओ य । १. आगमओ य, प. से किं तं आगमओ भावज्झवणा ? उ. आगमओ उवउत्ते। भावज्झवणा झवणापयत्थाहिकारजाणए से से आगमओ भावझवणा । प से कि त णो आगमओ भावझवणा ? उ. णो आगमओ भावज्झवणा-दुविहा पण्णत्ता, तं जहा २. अप्पसत्था य। १. पसत्या य, प. से किं तं पसत्या ? उ. पसत्या चउव्हिा पण्णत्ता, तं जहा १. कोहझवणा ३. मायज्झवणा, से तं पसत्या । प. से किं तं अप्पसत्था ? उ. अप्पसत्था-तिविहा पण्णत्ता, तं जहा २. माणज्झवणा, ४. लोभज्झवणा । २. दंसणज्झवणा, १. नाणज्झवणा, ३. चरितझवणा से तं अप्पसत्था से तं नो आगमओ भावझवणा । सेतं भावझवणा से तं झवणा । सेतं ओहनिष्फण्णे । X X - अणु. सु. ५८०-५९२ X १८९. (२) नामनिष्फण्णे सामाइयस्स निक्खेबो प से किं तं नामनिष्फण्णे ? उ. नामनिप्फण्णे-सामाइए से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. णामसामाइए, २. ठवणासामाइए, ३. दव्वसामाइए, ४. भावसामाइए। द्रव्यानुयोग - (१) उ. समय पूर्ण होने पर जो जीव उत्पन्न हुआ और प्राप्त शरीर से जिनोपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में क्षपणा पद को सीखेगा, किन्तु अभी नहीं सीख रहा है, ऐसा वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यक्षपणा है। प्र. इसके लिए क्या दृष्टान्त है ? उ. (जैसे किसी घड़े में अभी थी अथवा मधु नहीं भरा गया है, किन्तु भविष्य में भरे जाने की अपेक्षा) अभी से यह घी का घड़ा होगा, यह मधु का घड़ा होगा ऐसा कहना । प्र. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा क्या है ? उ. ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यक्षपणा, ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य-आय के समान है। यह ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यक्षपणा है। यह नोआगमद्रव्य क्षपणा है। यह द्रव्यक्षपणा है। प्र. भावक्षपणा क्या है ? उ. भावक्षपणा दो प्रकार की कही गई है, यथा१. आगम से, २. नो आगम से । प्र. आगमभावक्षपणा क्या है ? उ. क्षपणा इस पद के अर्थाधिकार का उपयोगयुक्त ज्ञाता आगम से भाव क्षपणा है। यह आगम से भावक्षपणा है। प्र. नो आगमभावक्षपणा क्या है ? उ. नो आगमभावक्षपणा दो प्रकार की कही गई है, यथा १. प्रशस्तभावक्षपणा, २. अप्रशस्तभावक्षपणा । प्र. (नो आगम) प्रशस्तभावक्षपणा क्या है ? उ. (नो आगम) प्रशस्तभावक्षपणा चार प्रकार की कही गई है, यथा १. क्रोधपणा ३. मायाक्षपणा, यह प्रशस्तभावक्षपणा है। २. ४. मानक्षपणा, लोभक्षपणा । प्र. अप्रशस्तभावक्षपणा क्या है ? उ. अप्रशस्तभावक्षपणा तीन प्रकार की कही गई है, २. दर्शनक्षपणा, १. ज्ञानक्षपणा, ३. चारित्रक्षपणा । यह अप्रशस्त भावक्षपणा है। यह नो आगमभावक्षपणा है। यह भावक्षपणा है, यह क्षपणा है, यह क्षपणा ओघनिष्पन्ननिक्षेप का वर्णन पूर्ण हुआ। X X १८९. (२) नामनिष्यन्न में सामायिक का निक्षेप प्र. नामनिष्पन्न निक्षेप क्या है ? उ. नामनिष्पन्न 'सामायिक' है यथा यह चार प्रकार की कही गई है, यथा १. नामसामायिक, ३. द्रव्यसामायिक, २. स्थापनासामायिक ४. भावसामायिक ।

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