Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 889
________________ ७८२ दुपयाणं दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं आसाणं हत्थीणं, अपयाणं अंबाणं अंबाडगाणं आए। से तं सचित्ते। प. से किं तं अचित्ते? उ. अचित्ते-सुवण्ण-रयय-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल रत्तरयणाणं (संतसावएज्जस्स) आए। सेतं अचित्ते। प. से किं तं मीसए? उ. मीसए-दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरियाउज्जालंकियाणं आये। सेतं मीसए।सेतं लोइए। प. से किं तं कुप्पाययणिए? उ. कुप्पावयणिए-तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सचित्ते, २. अचित्ते, ३. मीसएय। तिण्णि वि जहा लोइए सेतं कुप्पावयणिए। -अणु.सु.५६६-५७० १८६. लोगुत्तरिय दव्याय -. से किं तं लोगुत्तरिए? उ. लोगुत्तरिए-तिविहे पण्णते,तं जहा १. सचित्ते, २. अचित्ते, ३. मीसएय। प. से किं तं सचित्ते? उ. सचित्ते-सीसाणं सिस्सिणियाणं आए। सेत सचित्ते। प. से किं तं अचित्ते? उ. अचित्ते-पडिग्गहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुंछणाणं आए। सेतं अचित्ते। प. से किं तं मीसए? उ. मीसए-सीसाणं सिस्सिणियाणं सभंडोवकरणाणं आए। द्रव्यानुयोग-(१) ) इनमें से दास-दासियों की आय द्विपद-आय है। अश्वों हाथियों की प्राप्ति चतुष्पद-आय है। आम, आमला के वृक्षों आदि की प्राप्ति अपद-आय है। यह सचित्त आय है। प्र. अचित्त-आय क्या है? उ. सोना-चाँदी, मणि-मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि (सारवान् द्रव्यों) की प्राप्ति अचित्त-आय है। यह अचित्त आय है। प्र. मिश्र-आय क्या है? उ. अलंकारादि से तथा वाद्यों से विभूषित दास-दासियों, घोड़ों, हाथियों आदि की प्राप्ति को मिश्र-आय कहते हैं। यह मिश्र-आय है। यह लौकिक-आय है। प्र. कुप्रावचनिक-आय क्या है? उ. कुप्रावचिनक-आय भी तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। ये तीनों लौकिक-आय के समान हैं। यह कुप्रावनिक आय है। १८६. लोकोत्तरिक द्रव्य आय (शिष्यादि की प्राप्ति) प्र. लोकोत्तरिक-आय क्या है? उ. लोकोत्तरिक आय तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. सचित्त, २. अचित्त, ३. मिश्र। प्र. सचित्त-लोकोत्तरिक-आय क्या है ? उ. शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति सचित्त (लोकोत्तरिक) आय है। यह सचित्त आय है। प्र. अचित्त-लोकोत्तरिक-आय क्या है? उ. अचित्त पात्र, वस्त्र, कम्बल, पादप्रोंच्छन आदि की प्राप्ति को अचित्त (लोकोत्तरिक) आय कहते हैं। यह अचित्त आय है। प्र. मिश्र (लोकोत्तरिक) आय क्या है? उ. भांडोपकरणादि सहित शिष्य-शिष्याओं की प्राप्ति को मिश्र आय कहते हैं। यह मिश्र आय है। यह लोकोत्तरिक आय है। यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्य-आय है। यह नो आगमद्रव्य-आय है। यह द्रव्य-आय है। सेतं मीसए।सेतं लोगुत्तरिए। सेतं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ते दव्याए। सेतं नो आगमओदव्याए।से तंदव्याए। -अणु.सु.५७१-५७४ १८७. पसत्थापसत्थ भावाए प.से किं तं भावाए? उ. भावाए-दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आगमओ य, . २. नो आगमओ य। प. से किं तं आगमओ भावाए? उ. भावाए-जाणए उवउत्ते। १८७. प्रशस्त-अप्रशस्त भावों की प्राप्ति प्र. भाव-आय क्या है? उ. भाव-आय दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. आगम से, २. नो आगम से। प्र. आगम भाव आय क्या है? उ. आयपद के ज्ञाता और साथ ही उसके उपयोग से युक्त जीव आगम भाव आय है।

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