Book Title: Dravyanuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 893
________________ ७८६ १९१. (३) सुत्तालावगनिप्फण्णनिक्खेवो प. से किं तं सुत्तालावगनिप्फण्णे ? उ. सुत्तालावगनिष्फण्णे इदाणिं सुत्तालावगनिष्फण्णे निक्लेवे' इच्छाये पत्तलक्खणे विण णिक्खिप्पड़ । प. कम्हा ? उ. लाघवत्थं । इओ अत्थि तइये अणुओगद्दारे अणुगमे त्ति, तहिणं णिक्खित्ते इह णिक्खित्ते भवइ, इह वा णिक्खिते तर्हि णिक्खिते भवइ. तम्हा इहं ण णिक्खिप्पड तहिं चैव णिक्खिप्पिस्सइ । सेतं निक्खेवे। १९२. अणुगम अणुओग परूवणाप से किं तं अणुगमे ? उ. अणुगमे-दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. सुत्ताणुगमे य, - अणु. सु. ६०० २. निज्जुति अणुगमे । - अणु. सु. ६०१ १९३. निज्जुत्ति अणुगमस्स पलवणाप से किं तं निज्जुत्तिअणुगमे ? उ. निज्जुत्तिअणुगमे - तिविहे पण्णत्ते, तं जहा१. निक्खेवनिज्जुत्तिअणुगमे, २. उदग्धायनिज्जुत्तिअणुगमे, ३. सुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे । प से किं तं निक्खेयनिज्जुत्ति अनुगमे ?उ. निक्खेवनिज्जुत्तिअणुगमे- अणुगए। प से किं तं उवग्घायनिज्जुत्तिअणुगमे ? उ. उवग्धायनिज्जुत्तिअणुगमे इमाहिं अणुगंतव्वे, तं जहा१. उद्देसे, २. निद्देसे य, ३. निग्गमे, ४ खेत्त, ५. काल, ६. पुरिसे य दोहिं गाहाहिं दोहिं ७. कारण, ८. पच्चय, ९ लक्खण, 90. णये, ११-१२. समोयारणाणुमए ॥ १३. किं १४. कइविहं १५. कस्स १६. कहिं, १७. केसु १८. कहं १९. किच्चिरं हवइ कालं । २०. कइ २१. संतर २२. मविरहितं २३. भवा २४.ऽऽगरिस २५. फासण २६. निरुत्ती ॥ सेतं उवग्धायनिज्जुत्ति अनुगमे। -अणु. सु. ६०२-६०४ १९४. सुत्त फासिय णिज्जुत्ति अणुगम प. से किं तं सुत्तप्फासियनिज्जुत्तिअणुगमे ? उ सुत्तफासियनिज्जुत्ति अणुगमे सुतं उच्चारेयव्यं अखलियं अमिलियं अविच्चमेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं । १९१ (३) सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप प्र. सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप क्या है ? उ. इस समय सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप की प्ररूपणा करने का प्रसंग होते हुए भी निक्षेप नहीं करते हैं। क्यों ? प्र. उ. संक्षिप्त करने के लिए अर्थात् लघुता की अपेक्षा । क्योंकि आगे अनुगम नामक तीसरे अनुयोगद्वार में इसका वर्णन है। अतः वहाँ पर निक्षेप करने से यहाँ निक्षेप हो गया। वहाँ निक्षेप किए जाने से वहाँ पर निक्षेप हो जाता है। इसलिए यहाँ निक्षेप नहीं करके वहाँ पर ही इसका निक्षेप किया जाएगा। यह निक्षेपरूपना है। १९२. अनुगम अनुयोग की प्ररूपणाप्र. अनुगम क्या है? द्रव्यानुयोग - (१) उ. अनुगम दो प्रकार का कहा गया है, यथा१. सूत्रानुगम, २. निर्युक्त्यनुगम । १९३. नियुक्त्यनुगम की प्ररूपणा प्र. निर्युक्त्यनुगम क्या है? उ. निर्युक्त्यनुगम तीन प्रकार की कही गया है, यथा १. निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम, २. उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम, ३. सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम । प्र. निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम क्या है ? उ. निक्षेप की नियुक्ति का अनुगम पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम क्या है? उ. उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम का स्वरूप इन गाथाओं से जानना चाहिए, बधा १. उद्देश, २. निर्देश, ३. निर्गम, ४ क्षेत्र ५. काल, ६. पुरुष, ७. कारण, ८ प्रत्यय ९ लक्षण, १०. नय, ११. समवतार, १२. अनुमत, १३. क्या, १४. कितने प्रकार का, १५. किसको, १६. कहां पर, १७. किसमें १८. किस प्रकार, १९. कितने काल तक, २०. कितना २१. अंतर २२. अविरह, " " · २३. भव, २४. आकर्ष, २५. स्पर्शना, २६. नियुक्ति । यह उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम है। १९४. सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति का अनुगमप्र. सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगंम क्या है ? उ. जिस सूत्र की व्याख्या की जा रही है उस सूत्र को स्पर्श करने वाली नियुक्ति के अनुगम को सूत्रस्पर्शिक-निर्युक्त्यनुगम कहते हैं। इस अनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्याम्रेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष, कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप सूत्र का उच्चारण करना चाहिए।

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